google.com, pub-7513609248165580, DIRECT, f08c47fec0942fa0 नीतीश कुमार "सुशासन बाबू से मानसिक दिवालियापन" की राह तक कैसे पहुंचे।

Ticker

6/recent/ticker-posts

Ad

नीतीश कुमार "सुशासन बाबू से मानसिक दिवालियापन" की राह तक कैसे पहुंचे।

नीतीश कुमार, बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे एक अनुभवी राजनेता हैं, जिनकी राजनीति, मानसिक स्थिति और भविष्य की चुनौतियों को समझने के लिए उनकी अब तक की राजनीतिक यात्रा, वर्तमान परिस्थितियों और संभावित भविष्य को जाने।
1. नीतीश कुमार की राजनीति

नीतीश कुमार की राजनीति सामाजिक न्याय, सुशासन और विकास के इर्द-गिर्द रही है। उनकी राजनीतिक यात्रा की कुछ प्रमुख विशेषताएं:

समाजवादी पृष्ठभूमि: नीतीश कुमार ने जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे समाजवादी नेताओं के प्रभाव में अपनी शुरुआत की। 1974-77 के जेपी आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी ने उन्हें सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के उत्थान का प्रबल समर्थक बनाया।

सुशासन बाबू की छवि: नीतीश ने बिहार में 2005 के बाद सड़क, बिजली, शिक्षा और कानून-व्यवस्था जैसे क्षेत्रों में सुधार कर "सुशासन बाबू" की छवि बनाई। साइकिल योजना, मिड-डे मील और जातिगत जनगणना जैसे कदमों ने उनकी सामाजिक और प्रशासनिक नीतियों को मजबूती दी।

गठबंधन की राजनीति: नीतीश की सबसे चर्चित विशेषता उनकी बार-बार गठबंधन बदलने की रणनीति है। उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (RJD), भारतीय जनता पार्टी (BJP), और फिर से RJD के साथ गठबंधन तोड़ा और बनाया। 2024 में उन्होंने महागठबंधन छोड़कर फिर से NDA में वापसी की, जिससे उनकी "पलटीबाज" छवि को बल मिला।

प्रेशर पॉलिटिक्स: नीतीश दबाव की राजनीति में माहिर माने जाते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में JDU का BJP के बराबर सीटें जीतना और NDA की केंद्र सरकार में उनकी अहम भूमिका इसका प्रमाण है।


2. मानसिक स्थिति पर सवाल

हाल के वर्षों में नीतीश कुमार की मानसिक और शारीरिक स्थिति को लेकर कुछ सवाल उठे हैं, विशेष रूप से उनके व्यवहार और बयानों के आधार पर:

प्रशांत किशोर का दावा: जन सुराज पार्टी के संस्थापक और पूर्व रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने 2025 में दावा किया कि नीतीश शारीरिक रूप से थके हुए और मानसिक रूप से रिटायर हो चुके हैं। उन्होंने नीतीश की याददाश्त पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह अपने मंत्रियों या जिले का नाम तक भूल जाते हैं।

विवादास्पद बयान: 2023 में नीतीश के विधानसभा में प्रजनन दर और महिला शिक्षा पर दिए गए बयान ने विवाद खड़ा किया। उनके शब्दों और बोलने के तरीके की आलोचना हुई, जिसे उन्होंने बाद में माफी मांगकर संबोधित किया।

सार्वजनिक व्यवहार: नीतीश के कुछ हालिया व्यवहार, जैसे नीति आयोग की बैठक से जल्दी उठकर चले जाना या राष्ट्रीय गान के दौरान असामान्य हरकतें, ने उनकी मानसिक स्थिरता पर सवाल उठाए। हालांकि, JDU और उनके समर्थकों ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि नीतीश पूरी तरह स्वस्थ हैं और यह विपक्ष की साजिश है।

विश्लेषकों का नजरिया: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नीतीश की चुप्पी और असामान्य व्यवहार रणनीतिक हो सकते हैं, जो उनकी दबाव की राजनीति का हिस्सा हैं।


3. भविष्य की पार्टी और गठबंधन की चुनौतियां

2025 के बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश और उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के लिए कई चुनौतियां पेश करेंगे। नीतीश के भविष्य और JDU के गठबंधन की संभावनाओं को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:

पार्टी के लिए चुनौतियां

उत्तराधिकारी का अभाव: नीतीश के बाद JDU में कोई मजबूत चेहरा नहीं है। उनके बेटे निशांत कुमार की राजनीति में संभावित एंट्री की चर्चा है, लेकिन इसे परिवारवाद के रूप में देखा जा रहा है। कुछ नेताओं और विश्लेषकों का मानना है कि निशांत EBC (अति पिछड़ा वर्ग) वोटों को एकजुट रख सकते हैं, लेकिन उनकी स्वीकार्यता पर सवाल हैं।

प्रशांत किशोर और RCP सिंह: नीतीश के पूर्व सहयोगी प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और RCP सिंह की "आप सब की आवाज" पार्टी JDU के वोट बैंक, खासकर कुर्मी और EBC वोटों, में सेंध लगा सकती हैं। प्रशांत किशोर ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।

पार्टी संगठन: 2020 की हार के बाद नीतीश ने JDU के संगठन में बदलाव किए, जैसे संजय झा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाना और सवर्ण वोटों को जोड़ने की कोशिश। लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी और नीतीश की घटती लोकप्रियता चुनौती बन सकती है।


गठबंधन की चुनौतियां

NDA के साथ तनाव: नीतीश और BJP के बीच सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर तनाव की खबरें हैं। चिराग पासवान (LJP), जीतन राम मांझी (HAM), और उपेंद्र कुशवाहा (RLM) जैसे सहयोगी दलों की महत्वाकांक्षाएं भी चुनौती हैं। BJP के बराबर सीटें (लगभग 100-110) लेने की नीतीश की मांग गठबंधन में तनाव बढ़ा सकती है।

महागठबंधन की संभावना: RJD नेता लालू यादव और तेजस्वी यादव ने नीतीश के लिए "दरवाजे खुले" रखने की बात कही है। लेकिन नीतीश की बार-बार पाला बदलने की छवि और RJD के साथ पुराने मतभेद इसे मुश्किल बनाते हैं।

विपक्ष का दबाव: तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की जोड़ी 2025 में NDA को मजबूत चुनौती दे सकती है। तेजस्वी की युवा अपील और सामाजिक न्याय की राजनीति नीतीश के EBC और OBC वोट बैंक को प्रभावित कर सकती है।


2025 के लिए नीतीश का भविष्य

मुख्यमंत्री पद की दावेदारी: नीतीश ने 2025 में फिर से मुख्यमंत्री बनने की मंशा जाहिर की है, और JDU ने "2025 फिर से नीतीश" के नारे के साथ प्रचार शुरू किया है। लेकिन उनकी घटती लोकप्रियता और स्वास्थ्य संबंधी सवाल उनके लिए रास्ता मुश्किल बना सकते हैं।

राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा: नीतीश ने 2023-24 में INDIA गठबंधन के संयोजक बनने और PM पद की उम्मीदवारी की कोशिश की, लेकिन विश्वास की कमी के कारण असफल रहे। अब NDA में उनकी भूमिका केंद्र सरकार में प्रभाव बनाए रखने तक सीमित हो सकती है।

विश्वसनीयता का संकट: बार-बार गठबंधन बदलने और हाल के विवादों (जैसे रामनवमी और इफ्तार विवाद) ने उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान पहुंचाया है। BJP ने उन पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया, जबकि हिंदू समुदाय ने उनकी तुलना "नीरो" से की।


कड़ी परीक्षा

नीतीश कुमार की राजनीति दबाव और रणनीति का मिश्रण रही है, जिसने उन्हें बिहार में लंबे समय तक प्रासंगिक बनाए रखा। हालांकि, उनकी मानसिक स्थिति पर सवाल और बार-बार पाला बदलने की छवि उनकी विश्वसनीयता को चुनौती दे रही है। 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव उनके लिए सबसे बड़ी परीक्षा होगी, जहां JDU को न केवल RJD और प्रशांत किशोर जैसे नए खिलाड़ियों से, बल्कि NDA के सहयोगियों से भी जूझना होगा। नीतीश का भविष्य उनकी स्वास्थ्य स्थिति, उत्तराधिकारी की रणनीति और गठबंधन की एकजुटता पर निर्भर करेगा। यदि वह अपनी सुशासन और सामाजिक न्याय की छवि को पुनर्जनन कर पाए, तो वह फिर से सत्ता में आ सकते हैं; अन्यथा, तेजस्वी यादव या अन्य नेता बिहार की सियासत में नया मोड़ ला सकते हैं।



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ