भारत की G7 शिखर सम्मेलन में भागीदारी: लाभ, चुनौतियाँ और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
G7 (ग्रुप ऑफ सेवन) विश्व की सात प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं—संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और कनाडा—का एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो वैश्विक आर्थिक, सुरक्षा, पर्यावरण और भू-राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा का मंच प्रदान करता है। भारत, जो G7 का औपचारिक सदस्य नहीं है, 2019 से नियमित रूप से अतिथि देश के रूप में इस शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया जाता रहा है। 2025 में कनाडा के अल्बर्टा प्रांत के कनानास्किस में 15-17 जून को आयोजित होने वाले G7 शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कनाडा के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने आमंत्रित किया है। यह निमंत्रण भारत के लिए वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और सशक्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, विशेष रूप से भारत-पाक तनाव और भारत-कनाडा संबंधों में हाल के उतार-चढ़ाव के संदर्भ में।
1. G7 का अवलोकन और भारत की भूमिका
G7 की स्थापना 1975 में वैश्विक आर्थिक संकटों, जैसे तेल संकट, से निपटने के लिए की गई थी। यह संगठन समय के साथ आर्थिक मुद्दों से आगे बढ़कर सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य, और भू-राजनीति जैसे व्यापक मुद्दों पर केंद्रित हो गया है। G7 के सदस्य देश वैश्विक अर्थव्यवस्था का लगभग 40% हिस्सा नियंत्रित करते हैं और वैश्विक नीति-निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत, जो दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और उभरती हुई शक्ति है, को G7 शिखर सम्मेलनों में अतिथि देश के रूप में आमंत्रित किया जाता है, जो इसकी बढ़ती वैश्विक प्रासंगिकता को दर्शाता है।
2. भारत के G7 में भाग लेने के लाभ
2.1 वैश्विक कूटनीति में भारत की स्थिति को मजबूती
G7 शिखर सम्मेलन में भारत की उपस्थिति वैश्विक मंच पर इसकी कूटनीतिक स्थिति को और सशक्त करती है। भारत, जो G20 और BRICS जैसे मंचों में पहले से ही सक्रिय है, G7 जैसे विशेष क्लब में भाग लेकर विकसित और विकासशील देशों के बीच एक सेतु की भूमिका निभा सकता है। यह भारत को वैश्विक नीति-निर्माण में अपनी आवाज को और प्रभावी ढंग से उठाने का अवसर देता है।
2.2 आर्थिक अवसर
G7 देशों के साथ भारत के व्यापारिक और निवेश संबंधों को बढ़ाने का यह एक महत्वपूर्ण अवसर है। भारत की अर्थव्यवस्था, जो 2024 में 3.9 ट्रिलियन डॉलर की अनुमानित GDP के साथ तेजी से बढ़ रही है, G7 देशों के लिए एक आकर्षक बाजार है। शिखर सम्मेलन में भारत को निवेश, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, और व्यापार समझौतों पर चर्चा का मौका मिलेगा। उदाहरण के लिए, भारत और कनाडा के बीच व्यापार 2023 में 8 बिलियन डॉलर से अधिक था, और इस मंच पर इसे और बढ़ाने की संभावनाएँ तलाशी जा सकती हैं।
2.3 आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समर्थन
भारत-पाक तनाव, विशेष रूप से अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, G7 में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। भारत इस मंच का उपयोग पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समुदाय का समर्थन जुटाने के लिए कर सकता है। G7 देशों ने पहले भी आतंकवाद के खिलाफ भारत की स्थिति का समर्थन किया है, और यह शिखर सम्मेलन भारत को अपनी सुरक्षा चिंताओं को और प्रभावी ढंग से उठाने का अवसर देगा।
2.4 जलवायु परिवर्तन और प्रौद्योगिकी में नेतृत्व
भारत ने जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जैसे कि 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य और सौर ऊर्जा में निवेश। G7 शिखर सम्मेलन में भारत अपनी हरित ऊर्जा पहलों को प्रदर्शित कर सकता है और G7 देशों से वित्तीय और तकनीकी सहायता प्राप्त कर सकता है। साथ ही, प्रौद्योगिकी और डिजिटल अर्थव्यवस्था में भारत की प्रगति—जैसे यूपीआई और डिजिटल इंडिया—को G7 देशों के साथ साझा करने का अवसर मिलेगा।
2.5 भारत-कनाडा संबंधों में सुधार
हाल के वर्षों में भारत और कनाडा के बीच खालिस्तान समर्थक गतिविधियों और कूटनीतिक विवादों के कारण तनाव रहा है। मार्क कार्नी के नेतृत्व में यह निमंत्रण दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने का एक अवसर प्रदान करता है। G7 शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी और कार्नी के बीच द्विपक्षीय वार्ता से व्यापार, शिक्षा, और प्रवासन जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ सकता है।
2.6 वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारत की भूमिका
कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएँ बाधित हुई हैं। भारत, जो फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है, G7 देशों के साथ अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है। G7 में भारत की भागीदारी "चीन प्लस वन" रणनीति को बढ़ावा दे सकती है, जिसमें G7 देश भारत को चीन के विकल्प के रूप में देख रहे हैं।
3. भारत के G7 में भाग लेने की चुनौतियाँ
3.1 औपचारिक सदस्यता का अभाव
भारत G7 का औपचारिक सदस्य नहीं है, जिसके कारण इसकी भूमिका एक अतिथि देश तक सीमित रहती है। इससे भारत को नीति-निर्माण प्रक्रिया में पूर्ण भागीदारी का अवसर नहीं मिलता। G7 के निर्णयों में भारत की राय को शामिल करने की कोई गारंटी नहीं है, जिससे इसकी प्रभावशीलता सीमित हो सकती है।
3.2 कूटनीतिक दबाव
G7 देशों के अपने भू-राजनीतिक हित हैं, जो भारत के हितों से टकरा सकते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ G7 देश रूस के साथ भारत के संबंधों पर सवाल उठा सकते हैं, विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में। भारत को अपनी तटस्थता बनाए रखने और G7 देशों के दबाव को संतुलित करने की चुनौती होगी।
3.3 खालिस्तान मुद्दे पर तनाव
भारत-कनाडा संबंधों में खालिस्तान समर्थक गतिविधियाँ एक संवेदनशील मुद्दा रही हैं। G7 शिखर सम्मेलन में भारत को कनाडा से इस मुद्दे पर ठोस आश्वासन की आवश्यकता होगी। यदि कनाडा खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहता है, तो यह भारत की छवि और शिखर सम्मेलन की प्रभावशीलता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
3.4 घरेलू आलोचना
भारत में विपक्षी दल, जैसे कांग्रेस, ने पहले G7 में भारत की भागीदारी को लेकर सरकार की आलोचना की थी, विशेष रूप से जब निमंत्रण में देरी की अटकलें थीं। यदि शिखर सम्मेलन27

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