google.com, pub-7513609248165580, DIRECT, f08c47fec0942fa0 बिहार मतदाता सूची विवाद और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई: दस्तावेज़, राजनीति और अधिकारों की जंग

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बिहार मतदाता सूची विवाद और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई: दस्तावेज़, राजनीति और अधिकारों की जंग

बिहार मतदाता सूची विवाद और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई: दस्तावेज़, राजनीति और अधिकारों की जंग

बिहार मतदाता सूची विवाद और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई: दस्तावेज़, राजनीति और अधिकारों की जंग

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलकों में भारी उथल-पुथल मची हुई है। सुप्रीम कोर्ट में इस प्रक्रिया के विरुद्ध कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं और अगली सुनवाई 10 जुलाई 2025 को निर्धारित की गई है। इस लेख में हम सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई, चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश, आवश्यक दस्तावेजों, विपक्ष की आलोचनाओं और आम जनता की प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं।

आवश्यक दस्तावेज: नागरिकता और सत्यापन की कसौटी

चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में नाम बनाए रखने के लिए फॉर्म-6 के साथ निम्नलिखित 11 दस्तावेजों में से कोई एक अनिवार्य रूप से मांगा है:

  • जन्म प्रमाण पत्र
  • स्कूल प्रमाण पत्र
  • पासपोर्ट
  • माता-पिता की नागरिकता का प्रमाण (1987 के बाद जन्मे लोगों के लिए)
  • आवासीय प्रमाण पत्र
  • जाति प्रमाण पत्र
  • पेंशन भुगतान आदेश
  • अन्य सरकारी पहचान पत्र (ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड इत्यादि)

नोट: सभी मतदाताओं को 25 जुलाई 2025 तक ये दस्तावेज़ फॉर्म-6 के साथ जमा करना अनिवार्य है।

आधार और राशन कार्ड को बाहर क्यों रखा गया?

  • नागरिकता का प्रमाण नहीं: आधार कार्ड केवल बायोमेट्रिक पहचान है, यह भारतीय नागरिक होने का प्रमाण नहीं है।
  • प्रक्रिया की शुद्धता: चुनाव आयोग का कहना है कि SIR का उद्देश्य मतदाता सूची को "शुद्ध" करना है ताकि फर्जी या दोहरे नाम हटाए जा सकें।
  • भ्रामक प्रचार पर रोक: सोशल मीडिया पर फैल रही गलत सूचनाओं (जैसे दस्तावेजों की जरूरत नहीं है) के बाद चुनाव आयोग ने स्पष्टीकरण जारी किया।

विपक्ष का विरोध और सामाजिक चिंताएं

विपक्षी दलों और नागरिक संगठनों का मानना है कि इस प्रक्रिया से गरीब, ग्रामीण, दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक और प्रवासी समुदायों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।

प्रमुख राजनीतिक प्रतिक्रियाएं:

  • तेजस्वी यादव (RJD): इसे "वोटबंदी" और "चुनावी साजिश" करार दिया।
  • मल्लिकार्जुन खड़गे (कांग्रेस): BJP-RSS की अल्पसंख्यकों और दलितों को निशाना बनाने की साजिश।
  • मुकेश साहनी (VIP): सवाल उठाया कि यह प्रक्रिया "चुनाव की तैयारी है या दंगा भड़काने की?"
  • असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM): इसे NRC लागू करने की दिशा में एक कदम बताया।
  • योगेंद्र यादव: सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इसे वैध मतदाताओं को वंचित करने वाला बताया।

नागरिक संगठन और याचिकाकर्ता:

  • ADR (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स): SIR को असंवैधानिक बताया।
  • PUCL और महुआ मोइत्रा: गरीबों के मताधिकार के हनन का मुद्दा उठाया।

जनता की प्रतिक्रिया और जमीनी हालात

  • ग्रामीण क्षेत्रों में असंतोष: अधिकांश लोगों के पास सिर्फ आधार या वोटर कार्ड हैं, जिससे दस्तावेज जुटाना मुश्किल हो रहा है।
  • प्रवासी मजदूर: बिहार से बाहर रहने वाले लाखों मजदूरों को फॉर्म-6 भरना और दस्तावेज देना संभव नहीं हो पा रहा।
  • रिश्वतखोरी और अफरातफरी: पटना समेत कई जिलों में ब्लॉक कार्यालयों में भीड़ और भ्रष्टाचार की शिकायतें।

चुनाव आयोग का पक्ष और संरचना

चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि 24 जून 2025

  • 77,000+ बूथ लेवल ऑफिसर
  • 1.54 लाख बूथ लेवल एजेंट
  • 4 लाख वॉलंटियर्स
  • 1 अगस्त 2025 को ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और संवैधानिक सवाल

7 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की तत्काल सुनवाई स्वीकार की और 10 जुलाई 2025 की तारीख तय की।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी समेत अन्य वकीलों ने संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का हवाला देते हुए प्रक्रिया को लोकतंत्रविरोधी बताया।

मतदाता अधिकार बनाम प्रक्रिया की पवित्रता

बिहार में मतदाता सूची का यह विशेष गहन पुनरीक्षण जहां एक ओर पारदर्शिता और सटीकता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, वहीं दूसरी ओर यह गरीब, वंचित और प्रवासी समुदायों के मताधिकार के सामने एक गंभीर संकट भी बनता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला न केवल बिहार की चुनावी राजनीति, बल्कि भारत के लोकतंत्र की जड़ों को भी प्रभावित करेगा।

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