google.com, pub-7513609248165580, DIRECT, f08c47fec0942fa0 "उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2027: भाजपा बनाम सपा, कौन बनेगा मुख्यमंत्री?"

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"उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2027: भाजपा बनाम सपा, कौन बनेगा मुख्यमंत्री?"

उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है, और देश की राजनीति में इसका स्थान केंद्रीय है। यहां होने वाले विधानसभा चुनाव न केवल राज्य की दिशा तय करते हैं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की धारा को भी प्रभावित करते हैं। वर्ष 2027 का विधानसभा चुनाव इस दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह चुनाव एक ऐसे दौर में हो रहा है, जब भाजपा दो बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में रही है, और विपक्ष सत्ता में वापसी के लिए नए समीकरणों की तलाश में है।
1. भाजपा की तैयारी: संगठनात्मक मजबूती और लाभार्थी वर्ग को साधने की रणनीति

भारतीय जनता पार्टी ने 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस ली है। पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद ही 200 उन विधानसभा क्षेत्रों की पहचान कर ली जहाँ 2022 और 2024 दोनों चुनावों में अपेक्षित प्रदर्शन नहीं हुआ। इन क्षेत्रों में पार्टी ने “गांव चलो अभियान”, “बूथ विस्तारक योजना” और “लाभार्थी संपर्क अभियान” जैसे संगठित कार्यक्रमों के माध्यम से जमीनी स्तर पर पुनः पकड़ बनाने की योजना बनाई है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भी भाजपा के साथ मिलकर इन कमजोर क्षेत्रों में सामाजिक समीकरणों को सहेजने का प्रयास कर रहा है। संगठनात्मक पुनर्गठन के तहत जिलाध्यक्षों की नियुक्ति अब सांसदों और विधायकों की सलाह से हो रही है, जिससे कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष की खबरें भी आ रही हैं, लेकिन इससे पार्टी की पकड़ चुनी हुई क्षेत्रों में मजबूत हो रही है।

2. सामाजिक समावेशन की राजनीति: महिलाओं, दलितों और पिछड़ों पर फोकस

भाजपा ने संगठन में महिलाओं, दलितों और पिछड़े वर्गों को अधिक प्रतिनिधित्व देने का निर्णय लिया है। यह फैसला केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि चुनावी रणनीति का हिस्सा है। प्रदेश में दलित और ओबीसी वर्ग का बड़ा वोट बैंक है, जिसे विपक्ष ने पारंपरिक रूप से साधा है। भाजपा अब इन तबकों को “लाभार्थी वर्ग” के रूप में देख रही है, जिन्हें मुफ्त राशन, आवास, उज्ज्वला गैस कनेक्शन जैसी योजनाओं से जोड़कर मतदाता के रूप में परिवर्तित किया गया है।

साथ ही, 'संविधान गौरव अभियान' जैसे विशेष कार्यक्रम दलित समुदाय में भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसकी शुरुआत बुंदेलखंड जैसे पिछड़े इलाकों से की गई है।

3. योगी आदित्यनाथ की छवि और "80 बनाम 20" की राजनीति

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2027 को “80 बनाम 20 की लड़ाई” बताया है, जहाँ उनका आशय स्पष्ट रूप से हिंदू बहुसंख्यक वोट बैंक को गोलबंद करना है। इस बयान से यह भी संकेत मिलता है कि भाजपा एक बार फिर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और बहुसंख्यकवादी राजनीति के सहारे चुनावी नैया पार करना चाहती है।

योगी की छवि एक निर्णायक, सख्त प्रशासन वाले नेता की बनी है, जिसने कानून-व्यवस्था को सख्ती से लागू किया, खासकर माफिया के खिलाफ कार्रवाई के मामले में। यही छवि भाजपा को शहरी और उच्च वर्गों के बीच समर्थन दिलाती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और लाभार्थी योजनाओं के सहारे समर्थन कायम है।

4. समाजवादी पार्टी की रणनीति: "PDA" का कार्ड और जमीनी मजबूती

विपक्ष की सबसे बड़ी ताकत समाजवादी पार्टी (सपा) है, जिसने 2022 के चुनाव में 111 सीटें जीती थीं। पार्टी अब 2027 के लिए "PDA" यानी "पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक" गठजोड़ पर फोकस कर रही है। अखिलेश यादव ने पार्टी के भीतर अनुभव और युवाशक्ति का संतुलन साधते हुए प्रशासनिक सेवा से रिटायर्ड अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को संगठन में जोड़ना शुरू किया है।

सपा की रणनीति भाजपा के “लाभार्थी वर्ग” के समानांतर “वंचित वर्ग” का एक मजबूत राजनीतिक गठजोड़ खड़ा करना है। पार्टी अब टिकट वितरण में पारदर्शिता, समयबद्ध घोषणाएं और सोशल मीडिया प्रचार पर भी ध्यान दे रही है।

5. नए खिलाड़ियों का उदय: भीम आर्मी और AIMIM

भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने 2022 के चुनाव में भले ही कोई खास सीटें न जीती हों, लेकिन दलित युवाओं में उनकी पकड़ बढ़ी है। वे 2027 के लिए पंचायत चुनावों को “सेमीफाइनल” मान रहे हैं और बूथ स्तर पर अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं। उनकी पार्टी “आजाद समाज पार्टी” पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने का माद्दा रखती है।

वहीं AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सक्रिय हैं, जिससे सपा के लिए मुस्लिम वोट बैंक को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।

6. बहुजन समाज पार्टी की स्थिति: संकट में परंपरागत वोट बैंक

बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए 2027 का चुनाव “करो या मरो” की स्थिति जैसा है। 2022 और 2024 के चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। मायावती अब मंडल और जिलास्तरीय समीक्षा बैठकों के जरिए संगठन को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन पार्टी के पास न तो करिश्माई नेतृत्व है और न ही डिजिटल प्रचार तंत्र।

दलित वोटों का बिखराव बसपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। एक तरफ भाजपा “संविधान गौरव अभियान” चला रही है, तो दूसरी ओर चंद्रशेखर आजाद जैसे नेता उभरकर सामने आ रहे हैं, जिससे बसपा का कोर वोट बैंक छिटक रहा है।

7. सर्वे क्या कह रहे हैं?

जुलाई 2024 में ABP News द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार यदि उसी समय चुनाव होते तो:

INDIA गठबंधन (मुख्यतः सपा): 224 सीटें

एनडीए (भाजपा): 174 सीटें

अन्य: 5 सीटें


यह सर्वे बताता है कि सपा-राहुल कांग्रेस गठबंधन भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में है। हालांकि, भाजपा अभी भी मत प्रतिशत के मामले में सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है।

India Today-CVoter के सर्वे के अनुसार भाजपा को 4% तक की वृद्धि और INDIA गठबंधन को 2% की गिरावट का अनुमान है। यह परस्पर विरोधाभासी आंकड़े हैं, जो यह स्पष्ट करते हैं कि मतदाता अभी निर्णायक स्थिति में नहीं हैं।

8. मुद्दे क्या होंगे?

2027 में भाजपा “विकास + हिंदुत्व” की दोहरी रणनीति अपनाएगी। कानून-व्यवस्था, इंफ्रास्ट्रक्चर, बुलडोजर नीति, और राम मंदिर जैसे मुद्दों को उभारकर भावनात्मक लहर पैदा की जाएगी।

विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी, आरक्षण में न्याय और सामाजिक न्याय के सवालों पर भाजपा को घेरने की तैयारी कर रहा है। किसानों की समस्याएं, खासकर गन्ना भुगतान और न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे मुद्दे भी प्रमुख होंगे।

9. निष्कर्ष: 2027 निर्णायक होगा

उत्तर प्रदेश में 2027 का चुनाव भाजपा के लिए सत्ता बनाए रखने की लड़ाई है, जबकि सपा और विपक्ष के लिए यह अस्तित्व की लड़ाई है। चुनाव की दिशा अब जाति आधारित समीकरणों, सामाजिक योजनाओं और नेता की छवि से तय होगी।

भाजपा जहां केंद्र और राज्य दोनों जगह सरकार होने का लाभ उठाकर सरकारी योजनाओं को “चुनावी हथियार” बना रही है, वहीं विपक्ष अपने सामाजिक आधार को पुनः संगठित कर सत्ता में वापसी का सपना देख रहा है।

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में यदि विपक्ष एकजुट रहा, तो भाजपा को 2027 में कड़ी चुनौती मिलेगी। लेकिन यदि विपक्ष बिखरा रहा, तो भाजपा “हिंदुत्व + लाभार्थी” समीकरण के सहारे फिर बाजी मार सकती है।

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