छत्तीसगढ़ में एक ऐतिहासिक जीतभारत की माटी में साहस, संकल्प, और संघर्ष की गाथाएँ अनादिकाल से गूँजती रही हैं। यह वही धरती है, जहाँ हर युग में चुनौतियों का सामना करने के लिए वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी है।
आज, 23 मई 2025 को, छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में एक ऐसी ही गाथा लिखी गई, जब भारतीय सुरक्षा बलों ने 50 घंटे की भीषण मुठभेड़ में शीर्ष माओवादी नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू को मार गिराया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे नक्सल आंदोलन के खिलाफ एक "ऐतिहासिक जीत" करार देते हुए इसे न केवल सुरक्षा बलों की वीरता का प्रतीक बताया, बल्कि राष्ट्र की उस अटल प्रतिबद्धता का भी परिचायक माना, जो नक्सलवाद के विषैले पंजों को भारत की प्रगति और शांति से दूर रखने के लिए कटिबद्ध है। यह लेख उस गौरवमयी क्षण की पड़ताल करता है, जो नक्सलवाद के खिलाफ भारत की जंग में एक मील का पत्थर साबित हुआ है।
नक्सलवाद:
एक जटिल और दीर्घकालिक चुनौतीनक्सलवाद, जिसकी जड़ें 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव में हुए विद्रोह से जुड़ी हैं, भारत के लिए एक ऐसी चुनौती रहा है, जो केवल सशस्त्र विद्रोह तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक-आर्थिक असमानताओं, विकास की कमी, और आदिवासी क्षेत्रों में उपेक्षा की त्रासदी का परिणाम भी है।
माओवादी विचारधारा के नाम पर नक्सलियों ने छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, और अन्य राज्यों के सुदूर जंगलों को अपने गढ़ में तब्दील कर लिया। वहाँ के निरीह आदिवासियों को भटकाने, स्कूलों को जलाने, और विकास की राह में रोड़े अटकाने में ये संगठन माहिर रहे हैं। नंबाला केशव राव जैसे नेता इस हिंसक विचारधारा के मास्टरमाइंड थे, जिन्होंने न केवल सुरक्षा बलों पर हमले किए, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी आतंक के साये में जीने को मजबूर किया।
नंबाला केशव राव, जिसे बसवराजू, गंगाधर जैसे कई छद्म नामों से जाना जाता था, CPI (Maoist) की केंद्रीय समिति का प्रभावशाली सदस्य था। वह दंडकारण्य क्षेत्र में नक्सलियों की सैन्य रणनीति का प्रमुख नियोजक था, जिसके खौफनाक इरादों ने कई मासूमों की जान ली और विकास की गति को अवरुद्ध किया। उस पर 50 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे, और उसकी सिर पर रखा गया 1 करोड़ रुपये से अधिक का इनाम उसके खतरनाक चरित्र का गवाह था। ऐसे में, उसका अंत न केवल एक व्यक्ति का अंत है, बल्कि नक्सलवाद की रीढ़ पर एक गहरा प्रहार है।
ऑपरेशन:
साहस और रणनीति का संगमछत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा-बीजापुर सीमा क्षेत्र में 20 से 23 मई 2025 तक चली यह मुठभेड़ कोई साधारण ऑपरेशन नहीं थी। यह साहस, रणनीति, और समर्पण का एक अनुपम संगम थी। घने जंगलों, बीहड़ पहाड़ियों, और विषम परिस्थितियों के बीच छत्तीसगढ़ पुलिस, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF), और कोबरा (Commando Battalion for Resolute Action) जैसे विशेष बलों ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। खुफिया जानकारी के आधार पर शुरू हुई यह कार्रवाई 50 घंटे तक चली, जिसमें सुरक्षा बलों ने न केवल नंबाला को मार गिराया, बल्कि कई अन्य नक्सलियों को भी ढेर किया। कुछ नक्सलियों के घायल होकर जंगल में भागने की खबरें हैं, जो इस ऑपरेशन की तीव्रता को दर्शाती हैं।
इस मुठभेड़ की सफलता के पीछे सुरक्षा बलों की अथक मेहनत और तकनीकी दक्षता थी। ड्रोन, सैटेलाइट इमेजरी, और स्थानीय खुफिया जानकारी का उपयोग इस ऑपरेशन को सटीक और प्रभावी बनाने में सहायक रहा। यह ऑपरेशन उन जवानों की वीरता का प्रतीक है, जो अपनी जान जोखिम में डालकर देश की आंतरिक सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं। यह उन परिवारों के बलिदान का भी सम्मान है, जो इन जवानों के पीछे चट्टान की तरह खड़े रहते हैं।
गृह मंत्री का बयान:
एक नई दिशाकेंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस ऑपरेशन को "नक्सल मुक्त भारत" की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उनके शब्दों में, "यह जीत नक्सलवाद के खिलाफ हमारी अटल प्रतिबद्धता का प्रतीक है। नंबाला केशव राव जैसे आतंक के सौदागरों का अंत इस बात का संदेश है कि भारत की धरती पर हिंसा और अराजकता का कोई स्थान नहीं है।" शाह ने सुरक्षा बलों की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनकी वीरता और समर्पण ने देश को गौरवान्वित किया है। उनके इस बयान ने न केवल सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ाया, बल्कि आम जनता में भी यह विश्वास जगाया कि सरकार नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ने के लिए कटिबद्ध है।
नक्सलवाद पर प्रभाव:
एक टर्निंग पॉइंटनंबाला केशव राव का मारा जाना नक्सल संगठन के लिए एक गहरा झटका है। वह संगठन की सैन्य रणनीति और नेतृत्व का एक महत्वपूर्ण स्तंभ था। उसकी अनुपस्थिति में CPI (Maoist) की कमान और नियंत्रण प्रणाली में भारी अव्यवस्था की संभावना है। हाल के वर्षों में कई शीर्ष नक्सली नेताओं के मारे जाने के बाद यह ऑपरेशन संगठन की कमजोर होती संरचना पर एक और प्रहार है। इससे नक्सलियों का मनोबल टूटने और उनके समर्थन आधार में कमी आने की संभावना है।
इसके अलावा, यह ऑपरेशन स्थानीय आदिवासी समुदायों के लिए भी एक सकारात्मक संदेश लेकर आया है। नक्सलियों ने लंबे समय तक इन समुदायों को डर और हिंसा के साये में रखा। स्कूलों को जलाने, सड़कों को नष्ट करने, और विकास परियोजनाओं को रोकने जैसे कृत्यों ने इन क्षेत्रों को प्रगति से वंचित रखा। अब, इस जीत के बाद सरकार के लिए यह अवसर है कि वह इन क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के विकास को गति दे।
विकास और सुरक्षा:
एक सिक्के के दो पहलूनक्सलवाद से निपटने के लिए भारत सरकार ने हमेशा दोहरी रणनीति अपनाई है: सैन्य कार्रवाई और विकास। जहाँ एक ओर सुरक्षा बल नक्सलियों के खिलाफ कठोर कदम उठा रहे हैं, वहीं सरकार ने बस्तर जैसे क्षेत्रों में सड़कें, स्कूल, अस्पताल, और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं। यह ऑपरेशन इस रणनीति का एक हिस्सा है, जो न केवल हिंसक तत्वों को समाप्त करता है, बल्कि स्थानीय लोगों को यह विश्वास भी दिलाता है कि सरकार उनके साथ है।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह
हालांकि यह ऑपरेशन एक बड़ी जीत है, लेकिन नक्सलवाद का खतरा अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। नक्सलियों के जवाबी हमले की आशंका बनी रहती है, और सुरक्षा बलों को सतर्क रहना होगा। साथ ही, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रभावित क्षेत्रों में विकास की गति रुके नहीं। आदिवासियों का विश्वास जीतना और उन्हें मुख्यधारा में शामिल करना इस जंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।
प्रभाव
एक नई सुबह की ओरछत्तीसगढ़ के जंगलों में गूँजी इस जीत की गाथा केवल एक मुठभेड़ की कहानी नहीं है। यह उस अटल संकल्प की कहानी है, जो भारत को हिंसा और अराजकता से मुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
नंबाला केशव राव का अंत नक्सलवाद के पतन की शुरुआत हो सकता है, बशर्ते हम इस जीत को विकास और समावेश के साथ जोड़ सकें। यह उन वीर जवानों को श्रद्धांजलि है, जो अपनी जान जोखिम में डालकर देश की रक्षा करते हैं। यह उन आदिवासियों की आशा है, जो वर्षों से हिंसा के साये में जी रहे हैं। और सबसे बढ़कर, यह भारत की उस आत्मा का प्रतीक है, जो हर चुनौती को परास्त करने की ताकत रखती है।
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