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भारत @2047: नीति, सहकारी संघवाद और विकसित राष्ट्र की ओर यात्रा। प्रधानमंत्री की आज नीति आयोग बैठक।

नीति आयोग की 10वीं गवर्निंग काउंसिल बैठक: भारत के भविष्य की संभावनाओं पर आम चर्चा।

परिचय
24 मई 2025 को नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित नीति आयोग की 10वीं गवर्निंग काउंसिल बैठक एक ऐसा ऐतिहासिक क्षण है, जो भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के संकल्प को मूर्त रूप देने की दिशा में एक निर्णायक पहल है। इस वर्ष की बैठक का थीम—"विकसित राज्य से विकसित भारत @2047"—भारत की राष्ट्रीय आकांक्षाओं को राज्यों के सहभागी दृष्टिकोण से जोड़ता है। यह न केवल नीति निर्धारण का एक केंद्र बिंदु बनता है, बल्कि सहकारी संघवाद को मजबूती देने का भी अवसर प्रदान करता है। इसमें सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री, उपराज्यपाल और प्रशासक शामिल हुए, जिससे इसकी समावेशिता और रणनीतिक महत्व और अधिक स्पष्ट होता है।

यह लेख इस महत्वपूर्ण बैठक के विभिन्न पहलुओं, मुख्य एजेंडे, राज्य-केंद्र सहयोग, वैश्विक संदर्भ में भारत की भूमिका और इससे उत्पन्न होने वाली दीर्घकालिक संभावनाओं का विश्लेषण करता है।

बैठक का संदर्भ और समकालीन प्रासंगिकता

नीति आयोग, जिसे 2015 में योजना आयोग के स्थान पर स्थापित किया गया था, केंद्र और राज्यों के बीच नीति समन्वय का एक लचीला और गतिशील मंच है। इसकी गवर्निंग काउंसिल नीति आयोग का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है, जो समावेशी विकास और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं पर चर्चा करता है।

2025 की यह बैठक कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है:

1. भूराजनीतिक चुनौतीपूर्ण समय: ऑपरेशन सिंदूर और बदलते अंतरराष्ट्रीय शक्ति समीकरणों के दौर में भारत की रणनीतिक तैयारी और आंतरिक स्थायित्व को मज़बूत करने की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।


2. आर्थिक अस्थिरता और अवसर: वैश्विक मंदी की संभावनाओं के बावजूद भारत की 6.5% की विकास दर इसे एक आकर्षक निवेश गंतव्य बनाती है। नीति आयोग की यह बैठक भारत की आर्थिक नीति को पुनः व्यवस्थित करने और विकास का नया रोडमैप तैयार करने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।


3. भारत @2047 का रोडमैप: आज़ादी के 100 वर्षों की ओर बढ़ते हुए यह बैठक एक दीर्घकालिक रणनीतिक ढांचा तैयार करने का अवसर है, जिसमें राज्यों से उनके स्वयं के 'विकसित राज्य दृष्टि पत्र' प्रस्तुत करने को कहा गया है।



मुख्य एजेंडा: नवाचार, समावेश और सतत विकास

बैठक में जिन प्रमुख क्षेत्रों पर फोकस किया गया, वे सभी भारत के भविष्य की दृष्टि से अनिवार्य हैं। इनमें उद्यमिता, रोजगार, MSMEs का सशक्तिकरण, अनौपचारिक क्षेत्र का समावेशीकरण, हरित अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य और डिजिटल शासन शामिल हैं। इनका प्रभाव केवल अल्पकालिक आर्थिक संकेतकों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि ये सामाजिक, पर्यावरणीय और संस्थागत स्तर पर व्यापक परिवर्तन की नींव रखेंगे।

1. उद्यमिता और रोजगार सृजन



भारत के पास विश्व की सबसे युवा जनसंख्या है, जो उसे "जनसांख्यिकीय लाभांश" प्रदान करती है। किंतु यह लाभ केवल तभी सार्थक होगा जब युवाओं को उत्पादक रोजगार और स्वरोजगार के अवसर मिलें। गवर्निंग काउंसिल बैठक में इस पर बल दिया गया कि:

राज्यों को स्टार्टअप और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष नीति ढांचे तैयार करने होंगे।

राष्ट्रीय कार्यक्रम जैसे 'स्टार्टअप इंडिया', 'मेक इन इंडिया', और 'डिजिटल इंडिया' को राज्य स्तर पर क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।


उदाहरण: कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों ने स्टार्टअप इकोसिस्टम के विकास में उल्लेखनीय सफलता पाई है, और अब बिहार, झारखंड, ओडिशा जैसे राज्य भी इस राह पर चल सकते हैं।

2. MSMEs का सशक्तिकरण



भारत में लगभग 6.3 करोड़ MSMEs हैं, जो GDP का लगभग 30% और कुल रोजगार का 45% योगदान देते हैं। इन उद्यमों को समर्थन देने के लिए:

डिजिटल तकनीक को अपनाने के लिए प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता

उत्पाद गुणवत्ता बढ़ाने हेतु R&D और स्किलिंग हब की स्थापना

घरेलू और वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों से जोड़ना


उदाहरण: तमिलनाडु का कपड़ा उद्योग या पंजाब का खेल सामग्री उद्योग अगर वैश्विक मानकों पर सशक्त हो, तो भारत के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि संभव है।
3. अनौपचारिक क्षेत्र का सशक्तिकरण



भारत की 80% से अधिक कार्य शक्ति अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है। इस क्षेत्र को औपचारिक बनाने और सामाजिक सुरक्षा से जोड़ने के लिए:

डिजिटल पहचान और भुगतान प्लेटफॉर्म के माध्यम से श्रमिकों को लाभ पहुंचाना

गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को पेंशन और बीमा जैसी योजनाओं में सम्मिलित करना


यह कदम विशेष रूप से महिलाओं और ग्रामीण क्षेत्रों के कामगारों को सशक्त बना सकता है।

4. हरित अर्थव्यवस्था और सतत विकास



भारत ने 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। नीति आयोग की इस बैठक में:

नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में राज्यों की भूमिका पर चर्चा हुई।

हरित प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया।

सर्कुलर इकोनॉमी, अपशिष्ट प्रबंधन, और जल संरक्षण पर ज़ोर दिया गया।


उदाहरण: राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में जो निवेश किया है, वह अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय है।

5. शिक्षा, स्वास्थ्य और डिजिटल शासन



2047 तक विकसित भारत की परिकल्पना केवल आर्थिक नहीं, बल्कि मानव विकास सूचकांकों पर भी आधारित होगी। इस दिशा में:

राज्यों को NEP-2020 को स्थानीय संदर्भों में लागू करना होगा।

डिजिटल स्वास्थ्य मिशन को प्राथमिक स्वास्थ्य ढांचे में समाहित करना आवश्यक है।

e-Governance के माध्यम से सेवा वितरण में पारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित की जा सकती है।


राज्यों की भूमिका: सहकारी संघवाद की पुनर्परिभाषा

गवर्निंग काउंसिल की यह बैठक सहकारी संघवाद की भावना को संस्थागत रूप देने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

प्रत्येक राज्य की भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विशिष्टताएं उसे एक अद्वितीय विकास मॉडल अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं।

इस बैठक में 'वन साइज फिट्स ऑल' की जगह 'कस्टमाइज्ड विकास नीति' की बात की गई।


उदाहरण:

उत्तर पूर्व के राज्यों के लिए पर्यटन, जैव विविधता और जैविक कृषि पर बल

पश्चिमी राज्यों में औद्योगिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे पर ज़ोर

मध्य भारत में जल प्रबंधन और प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग पर ध्यान


वैश्विक संदर्भ में भारत की रणनीतिक स्थिति

भारत आज न केवल दक्षिण एशिया का नेतृत्वकर्ता है, बल्कि वह वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ भी बन चुका है। इस बैठक के संदर्भ में:

भारत को G20 की अध्यक्षता के अनुभव का लाभ उठाकर वैश्विक शासन में अधिक योगदान देना होगा।

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का 'चीन+1' विकल्प बनने की क्षमता भारत में है, जिसके लिए राज्य-स्तरीय उत्पादन केंद्रों और लॉजिस्टिक्स ढांचे को सशक्त बनाना होगा।


प्रमुख चुनौतियाँ और नीतिगत उत्तर

1. बेरोजगारी और कौशल अभाव: राज्यों को स्किल इंडिया और डिजिटल स्किलिंग कार्यक्रमों को ग्राम स्तर तक पहुँचाना होगा।


2. क्षेत्रीय असमानता: पिछड़े क्षेत्रों को विशेष आर्थिक पैकेज और परियोजनाएं दी जानी चाहिए।


3. जलवायु संकट: सामुदायिक भागीदारी, पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक के संयोजन से ही प्रभावी समाधान संभव है।


4. राजकोषीय अनुशासन: राज्यों को अपनी वित्तीय जिम्मेदारियों को संतुलित करते हुए विकास योजनाएं बनानी होंगी। नीति आयोग इस दिशा में मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकता है।



निष्कर्ष: भविष्य की दिशा और रणनीति

नीति आयोग की 10वीं गवर्निंग काउंसिल बैठक भारत को 2047 तक एक समृद्ध, समावेशी, और सतत राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की आधारशिला रखती है। यह केवल एक बैठक नहीं, बल्कि भारत के विकास का पुनर्निर्देशन है। इसके माध्यम से:

केंद्र और राज्य मिलकर एक साझा दृष्टि विकसित कर सकते हैं।

पारदर्शी नीति निर्माण और कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सकता है।

सहकारी संघवाद को 'प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद' के साथ संतुलित करके, राज्यों को नवाचार और उत्कृष्टता की ओर प्रेरित किया जा सकता है।


अगर यह बैठक एक सकारात्मक दिशा में कार्यान्वित होती है, तो यह भारत को वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार, नवोन्मेषी और टिकाऊ राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में सहायक सिद्ध होगी। यह समय है, जब भारत अपने इतिहास, संस्कृति और सामर्थ्य को एक नई ऊर्जा के साथ भविष्य की ओर अग्रसर करे। नीति आयोग की यह बैठक उस यात्रा की एक सशक्त शुरुआत है।

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