ईरान-इज़रायल संबंधों का इतिहास: सहयोग से शत्रुता तक
1948-1979: सहयोग का दौर
- प्रारंभिक मान्यता: 1950 में ईरान ने इज़रायल को मान्यता दी।
- रणनीतिक गठजोड़: सोवियत और अरब राष्ट्रवाद के खिलाफ साझेदारी।
- आर्थिक और सैन्य सहयोग: तेल आपूर्ति और खुफिया साझेदारी।
- सांस्कृतिक संपर्क: सीमित व्यापार और सकारात्मक संबंध।
1979: इस्लामी क्रांति और शत्रुता की शुरुआत
- खोमैनी का उदय: इज़रायल को ज़ायोनी दुश्मन घोषित किया गया।
- दूतावास बंद: इज़रायल के दूतावास को फिलिस्तीन को सौंपा गया।
- वैचारिक विरोध: इज़रायल को गैर-कानूनी और साम्राज्य समर्थक बताया गया।
1980-1990: अप्रत्यक्ष टकराव
- ईरान-इराक युद्ध: गुप्त रूप से इज़रायल ने ईरान को हथियार दिए।
- हिज़बुल्लाह का समर्थन: छद्म युद्ध की शुरुआत।
- फिलिस्तीनी समर्थन: ईरान ने इसे अपनी विदेश नीति का केंद्र बनाया।
1990-2000: बढ़ता तनाव
- परमाणु चिंता: इज़रायल को ईरान का कार्यक्रम अस्तित्व संकट लगा।
- छद्म युद्ध: हिज़बुल्लाह, हमास और अर्जेंटीना हमले।
2000-2010: खुले टकराव की ओर
- अहमदीनेजाद का युग: इज़रायल को "नक्शे से मिटाने" की धमकी।
- 2006 युद्ध: हिज़बुल्लाह-इज़रायल युद्ध में ईरानी हस्तक्षेप।
- परमाणु विवाद: अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का समर्थन।
2010-2020: छाया युद्ध
- साइबर हमले और हत्याएँ: स्टक्सनेट, वैज्ञानिकों की हत्या।
- सीरिया में संघर्ष: इज़रायल के हवाई हमले।
- क्षेत्रीय ध्रुवीकरण: प्रतिरोध अक्ष बनाम खाड़ी गठजोड़।
2020-वर्तमान (2025): तनाव चरम पर
- अब्राहम समझौता: ईरान का अलग-थलग पड़ना।
- फखरीज़ादे की हत्या: इज़रायल पर आरोप।
- ड्रोन-मिसाइल युद्ध: हिज़बुल्लाह और हमास का उपयोग।
- JCPOA वार्ता विफल: यूरेनियम संवर्धन तेज हुआ।
- गाज़ा-लेबनान संघर्ष: छद्म युद्ध तेज।
जहाँ सहयोग था, अब वहाँ शत्रुता है
1948 से 1979 तक सहयोग और 1979 के बाद शत्रुता – यही ईरान-इज़रायल संबंधों की मूल रेखा रही है। आज 2025 में, दोनों देश एक-दूसरे को अस्तित्व के लिए खतरा मानते हैं। क्षेत्रीय शक्ति संतुलन, परमाणु हथियारों की होड़ और छद्म युद्ध – यह सब मिलकर आने वाले समय को और अधिक जटिल बना सकता है।
विशेष टिप्पणी: यदि परमाणु मुद्दा और प्रत्यक्ष युद्ध की संभावना समय रहते कूटनीतिक उपायों से नहीं सुलझाई गई, तो यह संघर्ष पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकता है।

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