google.com, pub-7513609248165580, DIRECT, f08c47fec0942fa0 जब दोस्त दुश्मन बन गए: ईरान और इज़रायल की 77 साल की जंग israel Iran conflict

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जब दोस्त दुश्मन बन गए: ईरान और इज़रायल की 77 साल की जंग israel Iran conflict

ईरान-इज़रायल संबंधों का इतिहास: सहयोग से शत्रुता तक

ईरान-इज़रायल संबंधों का इतिहास: सहयोग से शत्रुता तक

1948-1979: सहयोग का दौर

  • प्रारंभिक मान्यता: 1950 में ईरान ने इज़रायल को मान्यता दी।
  • रणनीतिक गठजोड़: सोवियत और अरब राष्ट्रवाद के खिलाफ साझेदारी।
  • आर्थिक और सैन्य सहयोग: तेल आपूर्ति और खुफिया साझेदारी।
  • सांस्कृतिक संपर्क: सीमित व्यापार और सकारात्मक संबंध।

1979: इस्लामी क्रांति और शत्रुता की शुरुआत

  • खोमैनी का उदय: इज़रायल को ज़ायोनी दुश्मन घोषित किया गया।
  • दूतावास बंद: इज़रायल के दूतावास को फिलिस्तीन को सौंपा गया।
  • वैचारिक विरोध: इज़रायल को गैर-कानूनी और साम्राज्य समर्थक बताया गया।

1980-1990: अप्रत्यक्ष टकराव

  • ईरान-इराक युद्ध: गुप्त रूप से इज़रायल ने ईरान को हथियार दिए।
  • हिज़बुल्लाह का समर्थन: छद्म युद्ध की शुरुआत।
  • फिलिस्तीनी समर्थन: ईरान ने इसे अपनी विदेश नीति का केंद्र बनाया।

1990-2000: बढ़ता तनाव

  • परमाणु चिंता: इज़रायल को ईरान का कार्यक्रम अस्तित्व संकट लगा।
  • छद्म युद्ध: हिज़बुल्लाह, हमास और अर्जेंटीना हमले।

2000-2010: खुले टकराव की ओर

  • अहमदीनेजाद का युग: इज़रायल को "नक्शे से मिटाने" की धमकी।
  • 2006 युद्ध: हिज़बुल्लाह-इज़रायल युद्ध में ईरानी हस्तक्षेप।
  • परमाणु विवाद: अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का समर्थन।

2010-2020: छाया युद्ध

  • साइबर हमले और हत्याएँ: स्टक्सनेट, वैज्ञानिकों की हत्या।
  • सीरिया में संघर्ष: इज़रायल के हवाई हमले।
  • क्षेत्रीय ध्रुवीकरण: प्रतिरोध अक्ष बनाम खाड़ी गठजोड़।

2020-वर्तमान (2025): तनाव चरम पर

  • अब्राहम समझौता: ईरान का अलग-थलग पड़ना।
  • फखरीज़ादे की हत्या: इज़रायल पर आरोप।
  • ड्रोन-मिसाइल युद्ध: हिज़बुल्लाह और हमास का उपयोग।
  • JCPOA वार्ता विफल: यूरेनियम संवर्धन तेज हुआ।
  • गाज़ा-लेबनान संघर्ष: छद्म युद्ध तेज।

जहाँ सहयोग था, अब वहाँ शत्रुता है

1948 से 1979 तक सहयोग और 1979 के बाद शत्रुता – यही ईरान-इज़रायल संबंधों की मूल रेखा रही है। आज 2025 में, दोनों देश एक-दूसरे को अस्तित्व के लिए खतरा मानते हैं। क्षेत्रीय शक्ति संतुलन, परमाणु हथियारों की होड़ और छद्म युद्ध – यह सब मिलकर आने वाले समय को और अधिक जटिल बना सकता है।

विशेष टिप्पणी: यदि परमाणु मुद्दा और प्रत्यक्ष युद्ध की संभावना समय रहते कूटनीतिक उपायों से नहीं सुलझाई गई, तो यह संघर्ष पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकता है।

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