UP DGP नियुक्ति विवाद: केंद्र बनाम राज्य का नया संवैधानिक संघर्ष?
लेखक: आम चर्चा टीम | तारीख: 1 जून 2025
भूमिका
31 मई 2025 को उत्तर प्रदेश सरकार ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी राजीव कृष्ण को राज्य का नया डीजीपी नियुक्त किया।
यह नियुक्ति राज्य की नई पुलिस नियुक्ति नियमावली (2024) के तहत हुई, जिसमें यूपीएससी की भूमिका को दरकिनार कर दिया गया। केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को न मानने के कारण यह मामला एक बड़ा संवैधानिक मुद्दा बन गया है।
1. प्रकाश सिंह केस और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश
2006 में सुप्रीम कोर्ट ने 'प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ' केस में पुलिस सुधारों के लिए सात ऐतिहासिक निर्देश जारी किए। इनमें एक प्रमुख निर्देश था कि डीजीपी की नियुक्ति UPSC द्वारा बनाए गए पैनल में से होनी चाहिए, और कार्यकाल न्यूनतम दो वर्ष का होना चाहिए। यह आदेश सभी राज्यों पर बाध्यकारी है।
2. उत्तर प्रदेश की नई नियमावली: क्या बदला?
उत्तर प्रदेश सरकार की नई नियमावली में UPSC की भूमिका पूरी तरह समाप्त कर दी गई है। इसके बजाय राज्य की आंतरिक समिति से डीजीपी के लिए नाम तय किए जा सकते हैं। राज्य का तर्क है कि 'पुलिस राज्य सूची का विषय है', और केंद्र की संस्था को राज्य के चयन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
3. कार्यवाहक डीजीपी नियुक्तियों का चलन
पिछले तीन वर्षों में यूपी में लगातार कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त होते रहे: डीएस चौहान, आरके विश्वकर्मा, विजय कुमार और प्रशांत कुमार। सुप्रीम कोर्ट ने अन्य राज्यों में इस पर नाराजगी जताई है। यह स्थायित्व की कमी और कार्यपालिका की अनिश्चितता को दर्शाता है।
4. प्रशांत कुमार का सेवा विस्तार और केंद्र की असहमति
प्रशांत कुमार को सेवा विस्तार देने के यूपी सरकार के प्रस्ताव को केंद्र ने अस्वीकार कर दिया। इसके पीछे यह तर्क था कि कार्यवाहक डीजीपी को विस्तार देना सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन है। यह केंद्र और राज्य के बीच प्रशासनिक मतभेद का बड़ा उदाहरण है।
5. 'दिल्ली बनाम लखनऊ': संघीय ढांचे पर प्रभाव
हालाँकि दोनों सरकारें भाजपा शासित हैं, फिर भी इस टकराव ने 'दिल्ली बनाम लखनऊ' जैसी स्थिति उत्पन्न कर दी है। विपक्ष इसे सत्ता के भीतर फूट और पुलिस प्रणाली के राजनीतिकरण के रूप में देख रहा है।
6. सुप्रीम कोर्ट में संभावित कानूनी चुनौती
नई नियमावली को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। अगर कोर्ट इसे संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत बाध्यकारी मानता है, तो राज्य सरकार को UPSC के माध्यम से ही डीजीपी नियुक्त करना पड़ेगा।
7. UPSC की संवैधानिक भूमिका
संविधान के अनुच्छेद 315-323 के तहत UPSC एक स्वायत्त निकाय है जो अखिल भारतीय सेवाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करता है। उसकी भूमिका हटाना संघीय संरचना को कमजोर कर सकता है।
8. अन्य राज्यों की स्थिति
महाराष्ट्र, पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने भी UPSC की भूमिका को दरकिनार किया है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने असंतोष व्यक्त किया है। यूपी का यह कदम राष्ट्रीय बहस को और तेज कर सकता है।
9. संभावित परिदृश्य
- अगर सुप्रीम कोर्ट नियमावली को रद्द करता है, तो राज्य सरकार को पुनः UPSC के माध्यम से नियुक्ति करनी होगी।
- अगर नियमावली वैध ठहराई जाती है, तो यह अन्य राज्यों को भी ऐसा कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।
- केंद्र सरकार विधिक कार्रवाई कर सकती है, जिससे एक संवैधानिक टकराव गहरा सकता है।
10. सुझाव
यह विवाद केवल डीजीपी की नियुक्ति का नहीं, बल्कि भारत की संघीय व्यवस्था, न्यायिक आदेशों की अनिवार्यता, और प्रशासनिक पारदर्शिता की नींव से जुड़ा है। केंद्र सरकार इसे एक प्रशासनिक नियमों का उल्लंघन मानती है, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार इसे राज्यीय अधिकारों के तहत अपना निर्णय बताती है।
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