अब्बास अंसारी की सजा: भारतीय राजनीति में अपराधीकरण का काला अध्याय
मऊ सदर विधायक अब्बास अंसारी को भड़काऊ भाषण के लिए 2 साल की सजा और उनकी विधायकी की समाप्ति ने भारतीय राजनीति में अपराधीकरण की गहरी जड़ों को फिर उजागर किया है। यह लेख इस मामले के कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर तीखी टिप्पणी करता है।
मामले की पृष्ठभूमि और कानूनी ढांचा
3 मार्च 2022 को मऊ के पहाड़पुर मैदान में सुभासपा विधायक अब्बास अंसारी ने एक जनसभा में प्रशासनिक अधिकारियों को "हिसाब-किताब" करने और "सबक सिखाने" की धमकी दी। यह भाषण न केवल भड़काऊ था, बल्कि इसका वीडियो वायरल होने के बाद मऊ कोतवाली में सब-इंस्पेक्टर गंगाराम बिंद ने उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 189, 153-ए, 171-एफ, 506, और 120-बी के तहत FIR दर्ज की। मऊ की एमपी/एमएलए कोर्ट ने 31 मई 2025 को अब्बास को दोषी ठहराते हुए 2 साल की सजा और 2,000-3,000 रुपये का जुर्माना लगाया। उनके सह-आरोपी मंसूर अंसारी को 6 महीने की सजा और 1,000-2,000 रुपये का जुर्माना हुआ।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 के तहत, 2 साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले जनप्रतिनिधि की सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। नतीजतन, अब्बास की मऊ सदर सीट रिक्त घोषित कर दी गई है, और उपचुनाव की संभावना बन रही है। उनके वकील ने इस फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।
भड़काऊ भाषण: लोकतंत्र का दुश्मन
अब्बास का भाषण लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक गंभीर खतरा था। भारत में, जहां जनसभाएँ और चुनाव लोकतंत्र का आधार हैं, भड़काऊ बयान सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाते हैं और जनता-प्रशासन के बीच अविश्वास पैदा करते हैं। "हिसाब-किताब" जैसे बयान न केवल धमकी हैं, बल्कि सिस्टम को चुनौती देने का प्रयास हैं।
यह कोई नया चलन नहीं है। राजनेता अक्सर वोटों के लिए ध्रुवीकरण और उत्तेजना का सहारा लेते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारा कानूनी ढांचा इसे रोकने में सक्षम है? अब्बास के मामले में कोर्ट ने त्वरित कार्रवाई की, लेकिन यह अपवाद है। कई बार ऐसे मामले सालों तक लटके रहते हैं, और प्रभावशाली नेता कानूनी प्रक्रिया को लंबा खींचते हैं।
अपराधीकरण की गहरी जड़ें
अब्बास अंसारी का मामला केवल एक भाषण तक सीमित नहीं है। उनके पिता, स्वर्गीय मुख्तार अंसारी, मऊ के कुख्यात गैंगस्टर और पांच बार के विधायक थे। उन पर 60 से अधिक आपराधिक मामले थे, फिर भी वह बार-बार चुने गए। अब्बास पर भी आर्म्स एक्ट, मनी लॉन्ड्रिंग, और गैंगस्टर एक्ट जैसे गंभीर मामले लंबित हैं। यह भारतीय राजनीति में अपराधीकरण की गहरी जड़ों को दर्शाता है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, 43% सांसदों पर आपराधिक मामले थे, जिनमें 29% पर गंभीर अपराध शामिल थे। यह आंकड़ा 2024 तक और खराब हुआ है। अब्बास जैसे नेता इस प्रवृत्ति का हिस्सा हैं, जहां आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग सत्ता और प्रभाव हासिल करते हैं।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की सीमाएँ
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 अपराधीकरण को रोकने का एक उपाय है, लेकिन इसकी सीमाएँ साफ हैं। यह केवल दोषसिद्धि के बाद लागू होता है, और भारत की धीमी न्यायिक प्रक्रिया में दोषसिद्धि तक पहुंचने में सालों लग जाते हैं। अपील के जरिए सजा पर स्थगन आसानी से मिल जाता है, जैसा कि अब्बास के वकील ने संकेत दिया। इसके अलावा, यह कानून उन नेताओं को नहीं रोकता जिन पर गंभीर मामले दर्ज हैं लेकिन दोषसिद्धि नहीं हुई।
राजनीतिक दलों की दोहरी नीति
अब्बास सुभासपा के टिकट पर समाजवादी पार्टी गठबंधन के तहत विधायक बने, और अब सुभासपा भाजपा गठबंधन का हिस्सा है। यह विडंबना है कि दल भ्रष्टाचार और अपराधीकरण के खिलाफ दावे करते हैं, लेकिन आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को टिकट देते हैं। मऊ जैसे क्षेत्रों में, जहां जातिगत समीकरण महत्वपूर्ण हैं, आपराधिक नेता धनबल और मांसपेशियों के दम पर वोट हासिल करते हैं।
न्यायिक प्रणाली की चुनौतियाँ
मऊ की कोर्ट ने अब्बास को दोषी ठहराकर एक उदाहरण पेश किया, लेकिन यह अपराधीकरण का समाधान नहीं है। भारत में लाखों मामले कोर्ट में लंबित हैं, और राजनेताओं के खिलाफ मामले राजनीतिक दबाव के कारण जटिल हो जाते हैं। अब्बास को 2022 में हाई कोर्ट से गिरफ्तारी पर रोक मिली थी, जो कानूनी प्रक्रिया में तकनीकी खामियों का उदाहरण है।
लोकतंत्र पर प्रभाव
अब्बास जैसे नेताओं के मामले जनता के विश्वास को कमजोर करते हैं। मऊ जैसे क्षेत्रों में, जहां गरीबी और असमानता पहले से समस्याएँ हैं, ऐसे नेता समाज को और अस्थिर करते हैं। भड़काऊ भाषण और आपराधिक पृष्ठभूमि युवा पीढ़ी के नैतिक मूल्यों को कमजोर करती है, जिससे अपराध और सत्ता का चक्र मजबूत होता है।
आगे की राह
अपराधीकरण को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम जरूरी हैं:
- कानूनी सुधार: गंभीर मामलों में चार्जशीटेड नेताओं को अयोग्य घोषित करने का प्रावधान।
- न्यायिक तेजी: नेताओं के खिलाफ फास्ट-ट्रैक कोर्ट।
- दलों की जिम्मेदारी: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों पर रोक।
- मतदाता जागरूकता: उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि पर अभियान।
- चुनाव आयोग: भड़काऊ भाषणों पर त्वरित कार्रवाई।
निर्णायक कदम
अब्बास अंसारी की सजा एक छोटी जीत है, लेकिन यह समस्या का अंत नहीं। यह मामला भारतीय लोकतंत्र की कमजोरियों को उजागर करता है। जब तक मतदाता और दल अपराधीकरण को स्वीकार करते रहेंगे, तब तक ऐसे मामले सामने आते रहेंगे। स्वच्छ और जवाबदेह लोकतंत्र के लिए कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक सुधार जरूरी हैं।
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