google.com, pub-7513609248165580, DIRECT, f08c47fec0942fa0 इमरजेंसी का अर्धशतक: लोकतंत्र की सबसे काली रात से वर्तमान तक।

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इमरजेंसी का अर्धशतक: लोकतंत्र की सबसे काली रात से वर्तमान तक।

आपातकाल का अर्धशतक: 1975–2025 में लोकतंत्र की कसौटी

इमरजेंसी का अर्धशतक: 1975–2025 में लोकतंत्र की कसौटी

प्रस्तावना: "एक रात में बदल गया भारत"

अध्याय 1: आपातकाल की पृष्ठभूमि

1.1 आर्थिक संकट और सामाजिक असंतोष

1970 के दशक में वैश्विक तेल संकट, महंगाई, बेरोज़गारी और ग्रामीण संकटों ने भारत को गहरी अस्थिरता की ओर धकेला।

1.2 इंदिरा गांधी की लोकप्रियता और चुनौती

1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित किया, जिससे उनकी वैधता पर संकट उत्पन्न हुआ।

1.3 जेपी आंदोलन और संपूर्ण क्रांति

जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किया गया संपूर्ण क्रांति आंदोलन सत्ता के विरुद्ध व्यापक जन प्रतिरोध बन गया।

अध्याय 2: संवैधानिक आधार और आपातकाल की घोषणा

2.1 अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग

25 जून 1975 की रात इंदिरा गांधी ने अनुच्छेद 352 का इस्तेमाल कर आपातकाल घोषित किया, जो मंत्रिपरिषद की बैठक के बिना हुआ।

2.2 42वां संविधान संशोधन

इस संशोधन ने न्यायपालिका की शक्ति सीमित की, संसद को सर्वोच्चता दी और मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया।

अध्याय 3: दमन की नीतियाँ और प्रशासनिक आतंक

3.1 मीडिया सेंसरशिप

प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई। इंडियन एक्सप्रेस और स्टेट्समैन ने विरोध में खाली संपादकीय प्रकाशित किए।

3.2 विपक्ष और असहमति का खात्मा

हजारों विपक्षी नेता बिना मुकदमे के जेल में डाले गए। मीसा और डीआईआर कानूनों का दुरुपयोग हुआ।

3.3 नसबंदी और शहरी पुनर्वास

संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी और पुनर्वास अभियान चलाया गया, जिसमें गरीबों को सबसे अधिक निशाना बनाया गया।

3.4 पुलिस और प्रशासनिक भय

गुप्तचर एजेंसियों और पुलिस ने विरोध को कुचलने के लिए सत्ताशक्ति का दुरुपयोग किया।

अध्याय 4: संस्थाओं का आत्मसमर्पण

4.1 ADM जबलपुर केस

सुप्रीम कोर्ट ने आपातकाल में मौलिक अधिकारों के निलंबन को वैध ठहराया, सिवाय जस्टिस एच.आर. खन्ना की ऐतिहासिक असहमति के।

4.2 नौकरशाही और पुलिस तंत्र

प्रशासनिक अधिकारियों ने सत्ता की आज्ञा का अंधानुकरण किया और नागरिक स्वतंत्रताओं को दबाया।

4.3 विश्वविद्यालय और छात्र आंदोलन

जेएनयू, बीएचयू और अन्य विश्वविद्यालयों में छात्र आंदोलनों को बलपूर्वक कुचला गया।

अध्याय 5: सांस्कृतिक और बौद्धिक प्रतिरोध

5.1 सिनेमा में सेंसरशिप

“किस्सा कुर्सी का” जैसी फिल्मों को प्रतिबंधित कर उनकी कॉपियाँ जला दी गईं।

5.2 साहित्य और भूमिगत लेखन

लेखकों और पत्रिकाओं ने गुप्त रूप से सत्ता के खिलाफ साहित्यिक प्रतिरोध किया।

5.3 नुक्कड़ नाटक और IPTA की भूमिका

IPTA और जन नाट्य मंच ने नुक्कड़ नाटकों से जनता को जागरूक किया।

अध्याय 6: आपातकाल की समाप्ति और लोकतंत्र की वापसी

6.1 चुनाव की घोषणा और परिणाम

1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस की हार और जनता पार्टी की जीत ने लोकतंत्र को पुनः स्थापित किया।

6.2 44वां संविधान संशोधन

इस संशोधन ने आपातकाल की घोषणा की प्रक्रिया को कठिन बनाया और मौलिक अधिकारों की बहाली सुनिश्चित की।

6.3 संस्थाओं की पुनर्स्थापना

न्यायपालिका और प्रेस की स्वतंत्रता को फिर से मजबूत करने के प्रयास हुए।

निष्कर्ष: अंधकार में जागते प्रहरी

आपातकाल ने भारत के लोकतंत्र की कमजोरी और शक्ति दोनों को उजागर किया। जहां संस्थाएँ विफल हुईं, वहीं नागरिकों और कुछ साहसी लोगों ने प्रतिरोध का स्वर बनाए रखा।

आज डिजिटल युग में, जब सेंसरशिप और निगरानी के नए रूप सामने आए हैं, हमें यह स्मरण रखना होगा कि लोकतंत्र केवल चुनाव नहीं, बल्कि निरंतर नागरिक सजगता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सत्ता की पारदर्शिता का समन्वय है।

लेखक: आम चर्चा टीम | स्रोत: ऐतिहासिक दस्तावेज़, सुप्रीम कोर्ट निर्णय, राजनीतिक साक्षात्कार, साहित्यिक संग्रह

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