अंदर की कहानी
प्रधानमंत्री की रणनीतिक दृष्टि:
पहलगाम हमले के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब का दौरा बीच में छोड़कर आपात बैठक बुलाई और स्पष्ट निर्देश दिए कि बदला लिया जाएगा। ऑपरेशन की रूपरेखा तीन दिनों में तैयार की गई, और 10 दिनों की गहन तैयारी के बाद इसे अंजाम दिया गया।
पीएम मोदी ने ऑपरेशन का नाम "सिंदूर" सुझाया, जो आतंकवाद के खिलाफ सांस्कृतिक और भावनात्मक प्रतिशोध का प्रतीक था।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने ऑपरेशन की कमान संभाली, जिसमें खुफिया जानकारी और सटीक लक्ष्य चयन पर विशेष ध्यान दिया गया।
सैन्य समन्वय और तकनीक:
ऑपरेशन में भारतीय थलसेना, वायुसेना, और नौसेना ने संयुक्त रूप से काम किया, जो 1971 के युद्ध के बाद पहली ऐसी बड़ी संयुक्त कार्रवाई थी।
राफेल विमानों, ब्रह्मोस मिसाइलों, SCALP क्रूज मिसाइलों, HAMMER स्मार्ट बमों, और लॉइटरिंग म्यूनिशन (ड्रोन) का उपयोग किया गया। इन हथियारों ने पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली को अप्रभावी कर दिया।
7 मई की रात को 9 आतंकी ठिकानों (मुरिदके, बहावलपुर, मुजफ्फराबाद आदि) को नष्ट किया गया, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, और हिजबुल मुजाहिदीन के 70-100 आतंकी मारे गए।
9-10 मई को 11 पाकिस्तानी वायुसेना ठिकानों (नूर खान, रफीकी, भोलारी आदि) पर हमले किए गए, जिससे उनकी 20% बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा।
महिला कमांडरों की भूमिका:
ऑपरेशन में महिला कमांडरों को अग्रणी भूमिका दी गई, और प्रेस ब्रीफिंग में भी एक मुस्लिम महिला अधिकारी शामिल थी, जो आतंकियों के धार्मिक विभाजन के प्रयासों को जवाब था।
यह कदम भारत की एकता और समावेशी रणनीति को दर्शाता था।
कूटनीतिक रणनीति:
भारत ने वैश्विक समुदाय को पहले से सूचित किया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से बात की, यह स्पष्ट करते हुए कि भारत आतंकी ठिकानों को निशाना बनाएगा और किसी भी जवाबी हमले का मुंहतोड़ जवाब देगा।
अमेरिका और सऊदी अरब ने मध्यस्थता की कोशिश की, लेकिन भारत ने अपनी शर्तों पर ही सीजफायर स्वीकार किया।
भारत ने सिंधु जल समझौते को आतंकवाद से जोड़कर निलंबित किया, जिससे पाकिस्तान पर आर्थिक और कूटनीतिक दबाव बढ़ा।
मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक प्रभाव:
ऑपरेशन ने "घुस के मारेंगे" नीति को साकार किया, जिससे पाकिस्तान की परमाणु धमकियों की रणनीति बेअसर हो गई।
भारत ने आतंकियों और उनके समर्थकों (पाकिस्तानी सेना/ISI) के बीच कोई अंतर नहीं माना, जिससे आतंकवाद के खिलाफ नई नीति स्थापित हुई।
ऑपरेशन ने भारत की स्वदेशी सैन्य तकनीक (जैसे ब्रह्मोस) और वैश्विक हथियार बाजार में उसकी स्थिति को मजबूत किया।
रणनीति के प्रमुख तत्व
सटीकता और प्रौद्योगिकी:
उन्नत हथियारों और खुफिया जानकारी का उपयोग कर केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया, नागरिक हताहतों से बचा गया।
तीनों सेनाओं का तालमेल:
सेना, नौसेना, और वायुसेना का समन्वय, जिसने LoC, समुद्र, और हवाई क्षेत्र में वर्चस्व बनाए रखा।
वैश्विक माहौल बनाना:
अमेरिका, सऊदी अरब, और अन्य देशों के साथ संवाद कर भारत ने अपनी कार्रवाई को वैधता प्रदान की।आर्थिक दबाव: सिंधु जल समझौते का निलंबन और आतंकवाद को "टेरर कॉस्ट" से जोड़ना।
राष्ट्रीय एकता:
पहलगाम हमले के बाद कश्मीर सहित पूरे देश में आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता, जिसने ऑपरेशन को जनसमर्थन दिलाया।
भारत आगे पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ अपनी मुहिम को कैसे बढ़ा सकता है?
भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति को और प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
सतत सैन्य दबाव:निगरानी और सटीक हमले:
ड्रोन, सैटेलाइट, और साइबर खुफिया का उपयोग कर आतंकी ठिकानों की निरंतर निगरानी और सर्जिकल स्ट्राइक।
सीमा सुरक्षा:
LoC पर उन्नत तकनीक (थर्मल इमेजिंग, ड्रोन डिटेक्शन) और बाड़बंदी को मजबूत करना।स्वदेशी हथियारों का विकास: ब्रह्मोस, पिनाका, और ड्रोन जैसे हथियारों का उत्पादन बढ़ाकर आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना।
कूटनीतिक अभियान:
पाकिस्तान को अलग-थलग करना:
FATF (Financial Action Task Force) और UN में पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजक देश घोषित करने के लिए दबाव बनाना।
द्विपक्षीय समझौतों का पुनर्मूल्यांकन:
सिंधु जल समझौते को स्थायी रूप से निलंबित कर पाकिस्तान की कृषि और अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ाना।
क्षेत्रीय सहयोग:
अफगानिस्तान, ईरान, और मध्य एशियाई देशों के साथ खुफिया साझेदारी बढ़ाकर पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क को कमजोर करना।
आर्थिक और साइबर युद्ध:
आर्थिक प्रतिबंध: पाकिस्तान के व्यापार और वित्तीय लेनदेन पर वैश्विक प्रतिबंधों के लिए समर्थन जुटाना।
साइबर ऑपरेशन:
पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के ऑनलाइन प्रचार, भर्ती, और फंडिंग नेटवर्क को नष्ट करने के लिए साइबर हमले।
आतंकी फंडिंग पर नकेल:
हवाला नेटवर्क और क्रिप्टोकरेंसी के दुरुपयोग को रोकने के लिए खुफिया निगरानी बढ़ाना।
आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक एकता:कश्मीर में विकास:
जम्मू-कश्मीर में शिक्षा, रोजगार, और बुनियादी ढांचे पर निवेश कर युवाओं को आतंकवाद से दूर रखना।राष्ट्रीय एकता: धार्मिक और क्षेत्रीय विभाजन को कम करने के लिए सामाजिक अभियान, विशेष रूप से कश्मीर में सामुदायिक जुड़ाव।
खुफिया सुधार:
स्थानीय खुफिया नेटवर्क को मजबूत कर आतंकी हमलों की पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करना।
वैश्विक नेतृत्व:आतंकवाद विरोधी गठबंधन:
भारत को वैश्विक आतंकवाद विरोधी मंचों में नेतृत्व करना चाहिए, जैसे UN Counter-Terrorism Committee, और क्षेत्रीय संगठनों (SAARC, SCO) में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।सॉफ्ट पावर: भारतीय सिनेमा, संस्कृति, और डिजिटल मीडिया का उपयोग कर आतंकवाद विरोधी नैरेटिव को बढ़ावा देना।
पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता का लाभ:
आर्थिक कमजोरी:
पाकिस्तान की आर्थिक संकट (उच्च मुद्रास्फीति, कर्ज) का उपयोग कर आतंकी संगठनों के लिए फंडिंग को और मुश्किल करना।
आंतरिक विभाजन:
बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में अलगाववादी आंदोलनों को कूटनीतिक समर्थन (बिना सैन्य हस्तक्षेप) देकर पाकिस्तान सरकार पर दबाव बढ़ाना।
विश्व महाशक्तियों की राय
ऑपरेशन सिंदूर के बाद विश्व महाशक्तियों की प्रतिक्रियाएं मिश्रित थीं, जो उनके भू-राजनीतिक हितों पर आधारित थीं:
:प्रतिक्रिया:
अमेरिका ने मध्यस्थता की कोशिश की और पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन बंद करने की चेतावनी दी। उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भारत के साथ बातचीत की, लेकिन भारत ने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को खारिज कर दिया।
हित:
अमेरिका भारत को इंडो-पैसिफिक में चीन के खिलाफ एक रणनीतिक साझेदार मानता है, लेकिन पाकिस्तान के साथ भी सैन्य संबंध बनाए रखता है। ऑपरेशन ने अमेरिका को पाकिस्तान पर दबाव बनाने का अवसर दिया, लेकिन उसने खुलकर भारत का समर्थन नहीं किया ताकि क्षेत्रीय संतुलन बना रहे।
राय:
अमेरिका ने भारत की आतंकवाद विरोधी कार्रवाई को मौन स्वीकृति दी, लेकिन दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की।
चीन:प्रतिक्रिया:
चीन के लिए ऑपरेशन एक झटका था, क्योंकि पाकिस्तान उसका प्रमुख सहयोगी है और CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) उसकी रणनीति का हिस्सा है। भारत ने पाकिस्तान के चीनी रडार और वायु रक्षा प्रणालियों को नष्ट कर चीन की सैन्य विश्वसनीयता को चुनौती दी।
हित:
चीन नहीं चाहता कि भारत दक्षिण एशिया में प्रभुत्व स्थापित करे। वह पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक सहायता देता रहेगा।
राय:
चीन ने ऑपरेशन की निंदा नहीं की, लेकिन पाकिस्तान को और सैन्य सहायता देने की संभावना है। भारत के खिलाफ कूटनीतिक मंचों पर चीन पाकिस्तान का समर्थन कर सकता है।
रूस
:
प्रतिक्रिया: रूस ने ऑपरेशन पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया, लेकिन भारत के साथ उसके मजबूत रक्षा संबंधों को देखते हुए उसने मौन समर्थन दिया। रूस भारत को S-400 और अन्य हथियारों की आपूर्ति करता है, जो ऑपरेशन में उपयोगी रहे।
हित:
रूस भारत को एक प्रमुख हथियार खरीदार और क्षेत्रीय संतुलन के लिए महत्वपूर्ण मानता है। वह पाकिस्तान के साथ भी संबंध बनाए रखता है, लेकिन भारत के साथ उसका रिश्ता गहरा है।
राय
रूस ने भारत की संप्रभुता और आतंकवाद विरोधी प्रयासों का समर्थन किया, लेकिन क्षेत्रीय स्थिरता के लिए संयम की सलाह दी।
प्रतिक्रिया:
EU ने दोनों पक्षों से तनाव कम करने की अपील की, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ भारत की कार्रवाई को मान्यता दी। फ्रांस, जिसने राफेल और SCALP मिसाइलें भारत को दीं, ने ऑपरेशन की सफलता को अपनी सैन्य तकनीक की जीत के रूप में देखा।
हित:
EU भारत को एक आर्थिक और रणनीतिक साझेदार मानता है, लेकिन मानवाधिकार और क्षेत्रीय स्थिरता पर ध्यान देता है।
राय:
EU ने भारत के आतंकवाद विरोधी रुख का समर्थन किया, लेकिन दीर्घकालिक शांति के लिए बातचीत पर जोर दिया।
सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देश:प्रतिक्रिया:
सऊदी अरब ने मध्यस्थता की कोशिश की, लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि आतंकवाद पर कोई समझौता नहीं होगा।
UAE और अन्य खाड़ी देशों ने मौन समर्थन दिया, क्योंकि वे भारत के साथ आर्थिक संबंधों को महत्व देते हैं।हित: खाड़ी देश भारत के साथ व्यापार और निवेश को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन पाकिस्तान के साथ भी धार्मिक और ऐतिहासिक संबंध रखते हैं।
राय: सऊदी अरब ने दोनों पक्षों से शांति की अपील की, लेकिन भारत की कार्रवाई को क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक माना।
निष्कर्ष
ऑपरेशन सिंदूर भारत की आतंकवाद विरोधी नीति में एक ऐतिहासिक कदम था, जिसने सैन्य, कूटनीतिक, और मनोवैज्ञानिक स्तर पर पाकिस्तान को सबक सिखाया।
इसकी सफलता भारत की उन्नत तकनीक, सैन्य समन्वय, और वैश्विक कूटनीति पर आधारित थी। भविष्य में, भारत को सैन्य दबाव, कूटनीतिक अलगाव, और आर्थिक रणनीतियों के संयोजन से अपनी मुहिम को आगे बढ़ाना चाहिए। विश्व महाशक्तियों की प्रतिक्रियाएं उनके भू-राजनीतिक हितों से प्रभावित हैं, लेकिन भारत की निर्णायक कार्रवाई ने उसे वैश्विक मंच पर एक मजबूत और आत्मविश्वासपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है।
नोट:
यह जानकारी उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है और भू-राजनीतिक स्थिति के आधार पर भविष्य में बदलाव संभव है।
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