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सुप्रीम कोर्ट बनाम वक्फ बोर्ड: संवैधानिक और धार्मिक टकराव?

नई दिल्ली, [21/05/2025]:** सुप्रीम कोर्ट ने कल वक्फ बोर्ड से संबंधित एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई की, जिसमें धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन, कानूनी अधिकारों और सरकारी हस्तक्षेप जैसे मुद्दों पर गहन बहस हुई। यह मामला देश भर में वक्फ संपत्तियों के नियंत्रण और उनके उपयोग को लेकर चल रहे विवादों से जुड़ा है।  

 **सुनवाई के मुख्य बिंदु**  
1. **वक्फ संपत्तियों का कानूनी दर्जा:**  
   - याचिकाकर्ता की ओर से दावा किया गया कि कुछ राज्य सरकारें वक्फ संपत्तियों को "सार्वजनिक भूमि" मानकर उन पर अवैध कब्जा कर रही हैं।  
   - वक्फ बोर्ड के वकीलों ने जोर देकर कहा कि वक्फ संपत्तियां धार्मिक दान हैं और उन्हें संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक संस्थाओं के अधिकार) के तहत सुरक्षा प्राप्त है।  

2. **सरकारी हस्तक्षेप पर सवाल:**  
   - न्यायमूर्ति [नाम] ने पूछा कि क्या सरकार वक्फ बोर्ड के कामकाज में अनुचित दखल दे रही है।  
   - केंद्र सरकार ने जवाब दिया कि वक्फ एक्ट, 1995 के तहत राज्य सरकारों को निगरानी का अधिकार है, लेकिन यह धार्मिक स्वायत्तता को खत्म नहीं करता।  

3. **संपत्ति के दुरुपयोग का मामला:**  
   - कुछ न्यायाधीशों ने चिंता जताई कि वक्फ संपत्तियों का उपयोग कभी-कभी गैर-धार्मिक उद्देश्यों के लिए होता है। बोर्ड ने इसका खंडन करते हुए कहा कि वह सख्त नियमों का पालन करता है।  

4. **ऐतिहासिक पहलू:**  
   - मुस्लिम पर्सनल लॉ और वक्फ एक्ट, 1954 के प्रावधानों पर भी चर्चा हुई। बोर्ड ने दावा किया कि उसे संविधान और कानून दोनों से संरक्षण प्राप्त है।  
20 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को लेकर महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले पर गहन विचार-विमर्श किया। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस अधिनियम को असंवैधानिक बताते हुए इसके विभिन्न प्रावधानों पर सवाल उठाए, जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इसके पक्ष में दलीलें दीं। 


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 वक्फ संपत्तियों की पहचान और प्रबंधन

सुनवाई के दौरान वक्फ संपत्तियों की पहचान, उनके रजिस्ट्रेशन और प्रबंधन के मुद्दे पर भी चर्चा हुई। केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है, जबकि कपिल सिब्बल ने पुरानी वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि कई वक्फ संपत्तियाँ सैकड़ों साल पुरानी हैं और उनका रजिस्ट्रेशन संभव नहीं है। 

 वक्फ बाय यूजर का मुद्दा

वक्फ बाय यूजर (वक्फ द्वारा उपयोग) की अवधारणा पर भी बहस हुई। केंद्र सरकार ने कहा कि यदि संपत्ति रजिस्टर्ड है, तो वह वक्फ मानी जाएगी। इस पर CJI ने टिप्पणी की कि यदि वक्फ बाय यूजर संपत्तियों को डिनोटिफाई किया गया, तो यह एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। 

4. विरोध और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ

वक्फ अधिनियम के विरोध में विभिन्न मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने याचिकाएँ दायर की हैं। केरल सरकार ने भी इस अधिनियम के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक बताते हुए आपत्ति जताई है। विरोध में देशभर में प्रदर्शन हुए हैं, जिनमें पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा भी शामिल है। 


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⚖️ कोर्ट का रुख और आगे की प्रक्रिया

CJI बी. आर. गवई ने स्पष्ट किया कि जब तक कोई मजबूत कानूनी आधार नहीं होता, अदालत हस्तक्षेप नहीं करती। अदालत ने केंद्र सरकार से वक्फ अधिनियम की संवैधानिकता पर पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं बताई। अगली सुनवाई की तिथि अभी निर्धारित नहीं की गई है, लेकिन अदालत ने सभी पक्षों से विस्तृत दलीलें प्रस्तुत करने को कहा है। 


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इस मामले की सुनवाई से यह स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट वक्फ अधिनियम के विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार करेगा और संविधानिक दृष्टिकोण से इसका मूल्यांकन करेगा। अदालत का रुख इस बात की ओर संकेत करता है कि वह धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करेगी। 
**अगली सुनवाई और निर्णय**  
कोर्ट ने मामले को गहन विचार के लिए स्थगित कर दिया और अगली सुनवाई [तारीख] को तय की गई। न्यायालय ने सभी पक्षों से संबंधित कानूनी प्रावधानों और ऐतिहासिक नजीरों पर विस्तृत दस्तावेज जमा करने को कहा है। 

 **राष्ट्रीय प्रभाव**  
यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि देश भर में वक्फ संपत्तियों का मूल्य हजारों करोड़ रुपये में आंका जाता है। कोर्ट का फैसला धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सरकारी नीतियों के बीच संतुलन स्थापित करने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।  

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