कोलकाता लॉ कॉलेज गैंगरेप केस: राजनीति, अपराध और महिला सुरक्षा
29 जून 2025, कोलकाता:...
<कोलकाता लॉ कॉलेज गैंगरेप केस: अपराध, राजनीति और न्याय पर सवाल
29 जून 2025, कोलकाता: पश्चिम बंगाल के शैक्षिक केंद्र माने जाने वाले साउथ कोलकाता लॉ कॉलेज में 25 जून को घटी एक भयावह घटना ने राज्य ही नहीं, पूरे देश को झकझोर दिया है। एक 24 वर्षीय छात्रा के साथ कथित गैंगरेप की इस वारदात ने केवल महिला सुरक्षा और प्रशासनिक संवेदनशीलता पर सवाल नहीं उठाए, बल्कि बंगाल की राजनीति को भी असहज स्थिति में ला खड़ा किया है।
घटना का विस्तार: एक छात्रा, चार आरोपी और गार्ड रूम
घटना उस समय हुई जब छात्रा को पूर्व छात्र मनोजीत मिश्रा ने TMCP (तृणमूल छात्र परिषद) में पद दिलाने का झांसा देकर कॉलेज कैंपस बुलाया। गार्ड रूम में बुलाकर पहले मानसिक दबाव बनाया गया, फिर वहां मौजूद दो छात्र—जैब अहमद (19) और प्रमित मुखर्जी (20)—ने, 55 वर्षीय गार्ड पिनाकी बनर्जी के सहयोग से सामूहिक दुष्कर्म किया।
मेडिकल जांच में पीड़िता के गले और शरीर पर चोटों के निशान, नाखूनों के खरोंच और मानसिक आघात के प्रमाण मिले हैं। पुलिस को घटनास्थल के CCTV फुटेज में छात्रा को जबरन ले जाते हुए देखा गया है, जिससे आरोपियों की पहचान पुष्ट हुई।
SIT गठन और पुलिस की प्रतिक्रिया
कोलकाता पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए सभी चारों आरोपियों को गिरफ्तार किया है। एक नौ सदस्यीय SIT (Special Investigation Team) बनाई गई है, जिसमें महिला अधिकारी भी शामिल हैं। आरोपियों के कपड़े और घटनास्थल से मिले सबूतों को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है।
पुलिस ने यह भी बताया कि आरोपियों में से एक, मनोजीत मिश्रा, पहले भी यौन उत्पीड़न के आरोपों में शामिल रह चुका है, हालांकि पूर्व में कोई FIR दर्ज नहीं हुई थी। यह प्रशासनिक विफलता अब जांच के दायरे में है।
राजनीतिक भूचाल: टीएमसी और बीजेपी के बीच घमासान
घटना के तुरंत बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस केस को राजनीतिक रंग देते हुए आरोप लगाया कि मुख्य आरोपी TMCP का पूर्व अध्यक्ष और टीएमसी से जुड़ा हुआ है।
बीजेपी के नेताओं अमित मालवीय और सुकांत मजूमदार ने “TMC द्वारा संरक्षित अपराध” करार देते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस्तीफे की मांग की। सोशल मीडिया पर मनोजीत की टीएमसी नेताओं अभिषेक बनर्जी और चंद्रिमा भट्टाचार्य के साथ पुरानी तस्वीरें भी वायरल की गईं।
टीएमसी की असहज स्थिति और विवादित बयान
टीएमसी ने तुरंत बचाव में उतरते हुए यह दावा किया कि मनोजीत का पार्टी से कोई वर्तमान संबंध नहीं है। लेकिन कल्याण बनर्जी के एक बयान ने पार्टी को मुश्किल में डाल दिया। उन्होंने कहा, “अगर दोस्त ही दोस्त का बलात्कार करे तो पुलिस क्या कर सकती है?”।
इसके अलावा, मदन मित्रा के बयान—“लड़की को अकेले नहीं आना चाहिए था”—ने महिला संगठनों और आम नागरिकों में आक्रोश उत्पन्न कर दिया। इन बयानों को BJP ने “पीड़िता का अपमान” बताया और जनआंदोलन की चेतावनी दी।
राष्ट्रीय महिला आयोग और सामाजिक प्रतिक्रिया
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट की मांग की है और जांच में निष्पक्षता सुनिश्चित करने को कहा है। NCW अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा, “यह केस न केवल एक कॉलेज की छात्रा के साथ अन्याय है, बल्कि यह समाज की मानसिकता पर भी गहरा प्रश्न है।”
वहीं, अन्नपूर्णा देवी समेत कई केंद्रीय मंत्रियों ने ममता सरकार पर हमला बोलते हुए इसे महिला सुरक्षा में "संवेदनहीनता की चरम स्थिति" बताया।
छात्र संगठनों और सिविल सोसाइटी का विरोध
JNU, प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी, और जादवपुर यूनिवर्सिटी के छात्र संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया और “Justice for Law College Survivor” के नारे के साथ रैलियां निकालीं। महिला संगठनों जैसे APDR, Swayam और DMSC ने राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग की।
बीजेपी की फैक्ट-फाइंडिंग टीम
बीजेपी ने सत्यपाल सिंह, मीनाक्षी लेखी, बिप्लब देब, और मनन मिश्रा को शामिल करते हुए एक चार सदस्यीय समिति गठित की है। यह टीम पीड़िता, परिजनों और स्थानीय प्रशासन से बातचीत कर रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करेगी।
टीम ने पहली प्रतिक्रिया में कहा कि “राज्य सरकार जानबूझकर जांच में ढील दे रही है और SIT की संरचना भी पक्षपातपूर्ण है।”
कानूनी प्रक्रिया और न्याय की राह
कोर्ट ने सभी आरोपियों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा है। पुलिस ने IPC की धारा 376D, 342, 506 के तहत केस दर्ज किया है। महिला हेल्पलाइन और मनोवैज्ञानिक सहायता टीम पीड़िता की सहायता कर रही हैं।
मुकदमे की प्रक्रिया को फास्ट ट्रैक कोर्ट में लाया जा सकता है, जिसकी मांग कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं ने की है।
सोशल मीडिया और जनमत
घटना के बाद ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर #JusticeForKolkataSurvivor ट्रेंड कर रहा है। हजारों लोगों ने न्याय की मांग की है और महिला सुरक्षा पर कठोर कानूनों की आवश्यकता दोहराई है।
वहीं, कई यूज़र्स ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि राजनीतिक दल पीड़िता की त्रासदी का "राजनीतिक दोहन" कर रहे हैं।
निष्कर्ष: क्या हमें अब भी चुप रहना चाहिए?
यह घटना एक बार फिर याद दिलाती है कि महिला सुरक्षा के दावे कितने खोखले हैं, जब कॉलेज जैसे संस्थानों में भी छात्राएं सुरक्षित नहीं हैं। यह केवल एक लड़की की पीड़ा नहीं, बल्कि एक समाज की विफलता है।
राजनीतिक दलों को इसे सस्ती राजनीति का हथियार नहीं बनाना चाहिए, बल्कि यह समय है कि न्याय, संवेदना और व्यवस्था सुधार के लिए एकजुट हों।
सवाल यह नहीं है कि आरोपी किस पार्टी से हैं। सवाल यह है कि क्या पीड़िता को न्याय मिलेगा? क्या हमारा समाज उस व्यवस्था को बदलने को तैयार है जो ऐसी घटनाओं को जन्म देती है?
Sources: LiveMint, Prabhat Khabar, News18, The Print
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