सन ऑफ सरदार 2: जस्सी स्कॉटलैंड गया तलाक लेने, दर्शक सिनेमाघर से माफ़ी माँगते हुए लौटे!
लेखक: आम चर्चा टीम | शैली: व्यंग्यात्मक, चुटीली, सिनेमाई समीक्षा | शब्द: ~5000
भूमिका: जस्सी वापस आया है... और साथ में हँसी की उधारी भी!
कभी कभी लगता है बॉलीवुड वालों ने ठान रखा है कि 'कॉमेडी' का मतलब है – पुराने मसालों को तवे पर फिर से सेंक दो, ऊपर से अजय देवगन का कोई सीनियर सिटिज़न एक्शन डाल दो, दो-तीन नाचने वाले गाने और रवि किशन को छोड़ दो दर्शकों पर। फिर देखो कैसे जनता हँसी के नाम पर रोती है।
'सन ऑफ सरदार 2' 2012 की उसी ‘सन ऑफ सरदार’ का आधा-अधूरा बच्चा है, जिसे देखकर पहला पार्ट ऑस्कर विनिंग फिल्म लगने लगती है। निर्देशक विजय कुमार अरोड़ा ने सोचा – क्यों न जस्सी को स्कॉटलैंड भेजा जाए, लेकिन उसके साथ स्क्रिप्ट और लॉजिक को इंडिया में ही छोड़ दिया जाए!
कहानी का चटपटा खाका: तलाक, ट्रांसजेंडर और ट्रंपेट वाला ट्विस्ट!
फिल्म की कहानी जस्सी (अजय देवगन) के इर्द-गिर्द घूमती है – वही पुराने बाल, वही मोटे मूंछों वाले पंजाबी ताऊ स्टाइल। जस्सी इस बार स्कॉटलैंड पहुँचा है – बीवी (नीरू बाजवा) से तलाक लेने। लेकिन इमिग्रेशन पर ही पगड़ी टेढ़ी हो जाती है जब उसे पता चलता है कि मामला कोर्ट-कचहरी से आगे जाकर पागलखाने तक पहुँच चुका है।
राबिया (मृणाल ठाकुर) नाम की पाकिस्तानी डांसर मिलती है, जो अपने बाप को समझा रही है कि वह किसी भारतीय अफसर से शादी करना चाहती है। और तभी जस्सी बन जाता है नकली आर्मी अफसर, नकली पिता, नकली इमोशनल स्पीकर और असली कन्फ्यूजन का चैंपियन।
बीच-बीच में दीपक डोबरियाल ट्रांसजेंडर गुल बनकर आते हैं, और दर्शकों को ऐसा लगता है जैसे फिल्म में कॉमेडी का बोझ वही अकेले ढो रहे हैं।
किरदार: हँसाओ या तरस खाओ?
अजय देवगन: जस्सी के किरदार में अजय उतने ही क्लासिक लगते हैं जितना आजकल पकोड़ी में बिना नमक। उनके चेहरे पर वही 'गंभीर कॉमेडी' वाली अभिव्यक्ति – न हँसी, न रोना।
मृणाल ठाकुर: एक खूबसूरत, मगर स्क्रिप्ट से ठगी गई अभिनेत्री। लगता है जैसे उन्हें डांस करवाने के बाद डायरेक्टर भूल गया कि अब इस किरदार को क्या करना है।
रवि किशन: ट्रंपेट वाले मौसाजी। या तो चीखते हैं या ट्रंपेट बजाते हैं। कॉमिक टाइमिंग नदारद, ओवरएक्टिंग भरपूर।
दीपक डोबरियाल: 'गुल' के रूप में बेहतरीन प्रयास, मगर कमजोर स्क्रिप्ट के चलते कमाल नहीं कर पाए।
नीरू बाजवा: जस्सी की पत्नी के रूप में ठंडी और एकस्वर – "तलाक चाहिए!"
संवाद: पंचलाइन या पिटाई लाइन?
फिल्म के संवाद इतने पुराने और मरे हुए हैं कि व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी भी इन्हें रिजेक्ट कर दे।
निर्देशन: प्रयोगशाला या सजा?
निर्देशक विजय अरोड़ा ने इसे पंजाबी गानों की वेब सीरीज़ समझ लिया है। न कोई ठोस दृश्यक्रम, न अभिनय निर्देशन।
संगीत: DJ वाले बाबू थोड़ा धीरे बजा
हनी सिंह, मीत ब्रदर्स और कुछ पुराने ट्रैक्स का रीमिक्स – बस, कानों में शोर का हमला।
तकनीकी पक्ष: लोकेशन बढ़िया, लॉजिक गायब
स्कॉटलैंड की सुंदरता ही इकलौती अच्छाई है। ड्रोन शॉट्स अच्छे हैं, पर स्क्रिप्ट इतनी बिखरी है कि दृश्य अचानक कट हो जाते हैं।
हास्य: हँसी का कब्रिस्तान
इस ‘कॉमेडी’ फिल्म में हँसी बैकग्राउंड स्कोर से आती है – दर्शकों से नहीं।
क्लाइमेक्स: जस्सी की तलाक पर भाषणबाज़ी
जस्सी कोर्ट में जोशभरा भाषण देता है, दर्शक चुपचाप थिएटर से बाहर निकलते हैं।
कुल मिलाकर समीक्षा: हँसी की जगह हाय-हाय
यह फिल्म एक डूबती नाव है, जिसमें ड्रामा है मगर दिशा नहीं। कॉमेडी है मगर पंच नहीं। अजय देवगन के फैंस भी निराश होंगे।

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